महाराष्ट्र समेत इन राज्यों में मध्यावधि चुनाव!

पुणे। समाचार एजेंसी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की महत्वाकांक्षी योजना ‘एक देश एक चुनाव’ की साकार होती नजर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक 2019 में लोकसभा चुनाव से ही इसे लागू करने की कोशिशें जारी हैं।इसके तहत कम से कम 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ कराए जा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के चुनाव आगे बढ़ाए जा सकते हैं वहीं महाराष्ट्र, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। जबकि ओड़िशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के चुनाव तय वक्त पर लोकसभा के साथ हो सकेंगे।
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ओड़िशा, तेलंगाना,और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव तो लोकसभा के साथ ही होते हैं, लेकिन बाकी बचे आठ राज्यों में से मिजोरम में मौजूदा विधानसभा की मियाद दिसंबर तक है जबकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जनवरी 2018 तक। सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के बीच की अवधि को पूरा करने के लिए इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन भी लागू करने का विकल्प आज़माया जा सकता है। पिछली बार हरियाणा, महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव लोकसभा के 6 महीने बाद हुए थे। जबकि झारखंड विधासनभा के चुनाव लोकसभा के 7 महीने बाद हुए थे।
सबसे बड़ी दिक्कत बिहार की है क्योंकि यहां चुनाव लोकसभा के करीब डेढ़ साल बाद हुए थे तो क्या ऐसे में सवाल है कि क्या बिहार में डेढ़ साल पहले ही चुनाव करा लिए जाएंगे। भोपाल में चुनावी तैयारियों का जायजा लेने आए चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस पर सीधा जवाब नहीं दिया। हांलाकि भाजपा की तरफ से विधि आयोग को 8 पेज का हलफनामा दिया गया। हलफनामा एक देश, एक चुनाव के पक्ष में है। तर्क दिया जा रहा है कि बार-बार चुनाव से बार-बार विकास की योजनाएं रूकती हैं। एक देश एक चुनाव से चुनावी खर्च की भी बचत होगी।
कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि अगर भाजपा ने ऐसा किया तो ये सेल्फ गोल होगा। वहीं शिवसेना इस मामले पर चुनाव आयोग से मिलकर मांग की है कि चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शामिल ना हों। इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने के लिए सर्वदलीय बैठक सरकार बुला सकती है। यह बैठक विधि आयोग की सिफारिश सामने आने के बाद आयोजित की जा सकती है। गौरतलब हो कि 1967 तक देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होते थे। मगर कभी राज्य और कभी केंद्र में अस्थिरता के चलते चुनावों के वक्त में फर्क आता चला गया।