मूवी रिव्यु: ‘सिंह इज़ किंग’ और ‘भीष्म पितामह’ की जोड़ी है ‘द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’

पुणे : समाचार ऑनलाइन (असित मंडल) – ट्रेलर रिलीज के बाद से कॉन्ट्रोवर्सी में घिरी ‘द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ फिल्म आज रिलीज हुई। विजय रत्नाकर गुट्टे द्वारा निर्देशक इस फिल्म में अनुपम खेर, अक्षय खन्ना, सुजैन बर्नेट, अहाना कुमरा और अर्जुन माथुर लीड रोल में नज़र आ रहे है। चुनावी साल में रिलीज हुई पॉलीटिकल ड्रामा फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को देखने के दो तरीके हैं। पहला इसे केवल मनोरंजन के लिए देखें और दूसरा जैसा की कहा जा रहा है कि ये फिल्म एक खास ऐजेंडे के तहत बनाई गई है। पूर्व पीएम के बेहद करीबी रहे संजय बारू की किताब ‘द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर ‘ पर आधारित फिल्म में एक तरफ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को ‘सिंह इस किंग’ कहा गया है, तो दूसरी तरफ कमजोर और महाभारत का भीष्म पितामह बना दिया है, जिन्होंने राजनीतिक परिवार की भलाई की खातिर देश के सवालों का जवाब देने के बजाय चुप्पी साधे रखी। फिल्म में कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो पूर्व पीएम की इमेज को क्लीन करने के साथ-साथ धूमिल भी करती है।

फिल्म की कहानी –
2004 में लोकसभा में यूपीए के विजयी होने के साथ शुरू होती है। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (सुजैन बर्नेट) स्वयं पीएम बनने का लोभ त्यागकर डॉक्टर मनमोहन सिंह को पीएम पद के लिए चुनती हैं। उसके बाद कहानी में राहुल गांधी (अर्जुन माथुर), प्रियंका गांधी (आहना कुमरा) जैसे कई किरदार आते हैं। संजय बारू (अक्षय खन्ना ) जो पीएम का मीडिया सलाहकार है। लगातार पीएम की इमेज को मजबूत बनाता जाता है। उसने एक बात पहले ही स्पष्ट कर दी है कि वह हाईकमान सोनिया गांधी को नहीं बल्कि पीएम को ही रिपोर्ट करेगा। पीएमओ में उसकी चलती भी खूब है, मगर उसके विरोधियों की कमी नहीं है। बारू पीएम को ट्रांसफॉर्म करता है, उनके भाषण लिखता है फिर पीएम का मीडिया के सामने आत्मविश्वास से लबरेज होकर आना, बुश के साथ न्यूक्लियर डील की बातचीत, इस सौदे पर लेफ्ट का सरकार से सपॉर्ट खींचना, पीएम को कटघरे में खड़े किए जाना, पीएम के फैसलों पर हाईकमान का लगातार प्रभाव, पीएम और हाईकमान का टकराव, विरोधियों का सामना जैसे कई दृश्यों के बाद कहानी उस मोड़ तक पहुंचती है। फिल्म के बिच जहां न्यूक्लियर मुद्दे पर पीएम इस्तीफा देने पर आमादा हो जाते हैं पर हाईकमान उनको इस्तीफा देने से रोक लेती है।

फिल्म में इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया गया है कि कैसे वे अपनी ही पार्टी के लोगों की राजनीति का शिकार बने। इस फिल्म के ट्रेलर रिलीज के बाद से ही कॉन्ट्रोवर्सी हो गयी थी। लेकिन अगर फिल्म को फिल्म के जैसे ही देखा जाये तो यह एक मसाला फिल्म है। फिल्म का पहला हाफ काफी दिलचस्प है। पहले हॉफ प्राइम मिनिस्टर ऑफिस (पीएमओ) के अंदर ले जाता है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे कोमल स्वभाव के पीएम कैसे सभी चीजें कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं। इसमें उनका साथ देते है मीडिया एडवाइजर और पत्रकार संजय बारू (अक्षय खन्ना)। बारू पीएम के भाषण लिखते हैं। आगे की पूरी कहानी जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

कमजोर कड़ी –
फिल्म के डायरेक्टर विजय रत्नाकर गुट्टे जहां पहले हाफ में कहानी को बखूबी पर्दे पर उतारने में कामयाब रहे। वहीं, दूसरा हाफ काफी निराशाजनक है। खासकर फिल्म से एंटरटेनमेंट धीरे-धीरे गायब होने लगता है। फिल्म का दूसरा हाफ काफी कनफ्यूजिंग होने लगता है खासकर उनके लिए जिन्हें राजनीति में दिलचस्पी नहीं है। फिल्म का दूसरा हाफ में फिल्म की कहानी बहुत ही सपाट है। रोमांचक टर्न्स ऐंड ट्विस्ट की कमी खलती है। कई जगहों पर फिल्म एक ही सेट अप के कारण बोर करने लगती है। इसके अलावा फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी काफी औसत है।

दमदार एक्टिंग –
अभिनय की बात की जाए तो पूर्व पीएम की भूमिका में अनुपम खेर शुरुआत में वॉइस मॉड्यूलूशन और दोनों हाथ आगे झुकाकर चलने के अंदाज से अटपटे लगते हैं, मगर जैसे-जैसे किरदार का विकास होता जाता है और कहानी आगे बढ़ती जाती है। ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की आत्मा अक्षय कुमार और अनुपम खेर है। अक्षय खन्ना ने अपनी एक्टिंग से साबित कर दिया है कि क्यों वह इस रोल के लिए परफेक्ट थे। वहीं, दूसरी तरफ अनुपम खेर भी किरदार में इस कदर रम गए हैं कि एक वक्त के बाद आप अनुपम को नही बल्कि उनमें मनमोहन सिंह देखेंगे। जर्मन ऐक्ट्रेस सुजैन बर्नर्ट ने सोनिया गांधी के लुक को अच्छी तरह अपनाया है। वहीं प्रियंका गांधी के रोल में अहाना कुमरा और राहुल गांधी के रोल में अर्जुन माथुर को ज्यादा सीन्स नहीं मिले हैं।

अगर आप राजनीति में रूचि रखते है तो ये 1 घंटा 52 का मिनट देखने के लिए सिनेमाघरों में जरूर जाये। फिल्म के डायरेक्टर विजय रत्नाकर ने इसे ठीक-ठाक पर्दो पर उतारा है। हालांकि कहानी को उस तरह दर्शा नहीं पाए है जितनी लोगों को उम्मीद थी। हालांकि अगर आप अनुपम खेर में मनमोहन सिंह को ढूंढ़ते है तो बेशक आपको वो मिलेगा। हमारी तरफ से इस फिल्म को 3 स्टार दिया जाता है।