पेशवेकालीन चतुश्रृंगी माता मंदिर का अपना एक अलग इतिहास

पुणे | समाचार ऑनलाइन – पुणे का चतुश्रृंगी माता मंदिर अपने आप में अद्भुत और काफी प्राचीनकालीन मंदिर है। चतुश्रृंगी माता मंदिर में भक्तों की आपार श्रद्धा है। इस मंदिर की खास विशेषता यह है जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है, वह नवरात्र में बड़ी संख्या में आते हैं। भक्तों की ऐसी श्रद्धा है कि माता के समक्ष जो भी मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी होती है। इस मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए दूर दूर से भक्तजन जाते हैं।

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चतुश्रृंगी का पहला स्वरूप सप्तश्रृंगी मंदिर है। सप्तश्रृंगी मंदिर नासिक से 60 किलो मीटर दूरी पर नंडूरी, महाराष्ट्र के कालवन तालुका में स्थित है। पौराणिक कथा अनुसार माता का एक काफी बड़ा भक्त था। वह हर साल माता के दर्शन के लिए सप्तश्रृंगी मंदिर जाया करता था। लेकिन जब भक्त की उम्र हो गई तो, उम्र के एक पड़ाव पर आने के बाद भक्त का माता के दर्शन करना काफी मुश्किल हो गया था।

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भक्त काफी दुखी हो गया था कि वह माता के दर्शन के लिए नहीं जा सकेगा। भक्त के सपने में आकर माता ने कहा कि भक्त तुम चिंता न करो, अगर तुम मेरे दर्शन के लिए सप्तश्रृंगी मंदिर नहीं आ सकते हो तो क्या हुआ मैं तुम्हें अपने दर्शन देने के लिए खुद तुम्हारे पास आ जाऊंगी। भक्त की जैसे की नींद टूटी तो वह चतुश्रृंगी माता मंदिर जिस पहाड़ में स्थित है, वहां भक्त ने आकर देखा तो माता की अद्भुत मूर्ति पहाड़ों में देखा। उसके बाद से माता के भक्त ने चतुश्रृंगी माता मंदिर का निर्माण किया।

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नवरात्र के दिनों में चतुश्रृंगी माता मंदिर भक्तों को काफी भीड़ होती है। 180 सीढ़ियां चढ़कर भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में माता की सेवा करनेवालों की खास बात यह है कि यहां पीढ़ी दर पीढ़ी से भक्त माता की सेवा कर रहे हैं। इस मंदिर में लड्डू बेचने से वाले से लेकर, वाद्य बजानेवाले और चोपदार पीढ़ी दर पीढ़ी से सेवा करते आए हैं।
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