कुछ ऐसे गुज़रता है जेल में कैदियों का दिन

असित मंडल

पुणे : समाचार ऑनलाइन – सुबह छह से सात बजे के बीच जेल की सभी बैरकों के कैदी ग्राउंड में इकट्ठा होना शुरू हो जाते हैं। इसके बाद कैदी अपनी मर्जी से घूम-फिर सकते हैं। आठ बजे हर बैरक के बाहर भीड़ होने लगती है। यह ड्रम में आने वाली बेस्वाद चाय का वक्त होता है। चाय के बर्तन के लिए लंबी कतारों में कैदी खड़े हो जाते हैं। यह चाय कम, चाय जैसा गर्म पानी ज्यादा होती है। चाय के साथ कभी मीठा तो कभी नमकीन दलिया, पोहा जैसा नाश्ता दिया जाता है। दोपहर बारह से दो बजे के बीच जेलों में थाली, कटोरी और गिलास की आवाज सुनाई देने लगती है। यह खाने का वक़्त होता है। अधिकांश जेलों में 6 रोटी, पनियल दाल और बेजायका सब्जी परोसा परोसी जाती है। कैदियों को हफ्ते में एक दिन मीठा मिलता है। कभी मीठा दलिया तो कभी पीले मीठे चावल और संडे को हलुआ दिया जाता है। त्यौहार आदि के मौके पर कैदियों को पूड़ियाँ भी मिलती हैं। सरकार एक दिन के इस आहार पर 50 रुपए प्रति कैदी खर्च करती है।

किचन पर लाखों खर्च
जेल में हर दिन किचन का खर्च करीब 1 से 2 लाख रुपए आता है। इसके साथ-साथ भवन मेंटेनेंस, चिकित्सा, शिक्षा, बिजली, ऑफिस मेंटेनेंस, वेतन-भत्ते, वाहन आदि मदों के लिए सालाना 10 करोड़ से ज्यादा बजट होता है।

मुलाकात का वक़्त
जेलों में मुलाकात का समय अलग-अलग हो सकता है। भोपाल सेन्ट्रल जेल की बात करें तो मुलाकात का वक्त सुबह 8 से 12 तय है। मैनुअल के मुताबिक बंदी से उसके परिजन हफ्ते में सिर्फ एक दिन मिल सकते हैं। अगर छह दिन मिलना चाहते हैं तो यह भी मुमकिन है, लेकिन शर्तें लागू हैं। मुलाकात के लिए टेलीफोन केबिन हैं। कांच की दीवार एक तरफ बंदी और दूसरी ओर परिजन या रिश्तेदार। दोनों तरफ फोन पर एक-दूसरे को देखकर बात करते हैं। यह मुलाकात 5-10 मिनट की हो सकती है।

रात का खाना
जेल में कैदियों को रात को एक सूखी सब्जी, उसके साथ तरी वाली सब्जी व छह रोटी दी जाती हैं। खाद्य पदार्थों को तैयार करवाने मे खूब कोताही बरती जाती है। उचित सामग्री का प्रयोग न किए जाने से पानी कहीं और सब्जी कहीं और होती है। इससे भोजन निगला ही नहीं जाता है।

रात 8 बजे का माहौल
बंदियों को रात 8 बजे तक बैरक में पहुंचना जरूरी है। बैरक बंद करने के बाद होती है गिनती। यदि बैरक में एक बंदी भी कम निकला तो समझो जेल में कोहराम। जब तक वह मिल न जाए तब तक उस कैदी की खोजबीन में सब जागते रहते हैं। और अगर कैदी दूसरी बैरक में मिले तो उसकी ख़ैर नहीं।

खास सुविधा- जेल अस्पताल
अगर कैदी को छोटी-मोटी चोट लगती है या किसी की तबीयत ख़राब है, तो जेल में तत्काल सेवा की व्यस्था होती है, लेकिन अगर कैदी की तबियत ज्यादा ख़राब है तो कैदी के हिसाब से उसकी सुरक्षा को देखते हुए उसे अस्पताल ले जाया जाता है।

आजीवन कारावास कैदी
उम्र कैद की सजा वाले कैदियों को जेल में ही इनकम की शिक्षा दी जाती है। यानि की जब वह जेल से बाहर निकलेंगे तो वह अपनी रोजी रोटी कमा सकें। उम्रकैद की सजा पाए कैदियों को जेल में रस्सी बनाना आदि सिखाया जाता है। जबकि महिला कैदियों को आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाना सिखाया जाता है।

दो कंबल, एक चादर, एक थाली…
जेल में कैदियों को दो कंबल, एक चादर, एक थाली, दो कटोरी व एक गिलास दिया जाता है। सर्दी की रातें कठिन होती हैं। कंबल ओढें या बिछाएं, यही सोचते-सोचते सुबह हो जाती है।

कैंटीन के लिए कूपन
जेल परिसर में ही है केंटीन। इसमें कूपन सिस्टम से सामान मिल जाता है। मुलाकाती कूपन खरीदकर बंदियों को दे देते हैं। साबुन, बिस्किट, बीड़ी के बंडल और भी जरूरत का सामान यहां मिलता है।