पुणे ट्रैफिक डीसीपी का सवाल: 4 मिनट के लिए जान को जोखिम में डालेंगे? 

पुणे। संवाददाता

पूरे देश में सड़क दुर्घटनाओं से जितनी मौतें होती हैं, उतनी आतंकवाद या सामान्य अपराधों में नहीं होतीं। सड़क दुर्घटनाओं की सबसे बड़ी वजह ट्रैफिक नियमों के प्रति उदासीनता है। उन्हें अपनी गलती का जब अहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ट्रैफिक पुलिस नियमों का उल्लंघन करनेवालों से भारी जुर्माना वसूलने के साथ साथ अलग अलग फंडे अपनाकर लोगों को जागरूक बनाने में भी जुटी है।

ट्रैफिक पुलिस के ये अलग अलग फंडे हमेशा चर्चा के घरे में रहे हैं। जहां नागपुर ट्रैफिक पुलिस ने ‘बाइक एक आदमी तीन, बहुत नाइंसाफी है’ इस डायलॉग तले शोले के गब्बर सिंह के पोस्टर जारी चर्चा में आयी है। वहीँ पुणे पुलिस ने भी ट्वीटर पर ‘सिर्फ चार मिनट के लिए जान को जोखिम में डालकर अपराधी बनना चाहेंगे? यह सवाल उठाया है।

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मुंबई हो या लखनऊ, शहर में ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरक बनाने के लिए पुलिस नए-नए प्रयोग करती रहती है। ऐसा ही एक प्रयोग पुणे शहर की डीसीपी (ट्रैफिक) तेजस्वी सातपुते ने बीते दिन किया। उन्होंने दो बाइकर्स को एक ही कंपनी की दो बाइक्स देकर कहा कि वह कात्रज से शिवाजीनगर स्थित एक तय स्थान पर पहुंचे।

उन्होंने एक बाइकर को निर्देश दिए कि वह रास्ते में सभी ट्रैफिक नियमों का पालन करे, वहीं दूसरे बाइकर से उन्होंने कहा कि वह अपने हिसाब से जैसे चाहे जल्दी से जल्दी तय स्थान पर पहुंचे। जब दोनों बाइकर्स तय किये गंतव्य पर पहुंचे तब लगभग 10 से 11 किलोमीटर की दूरी तय करने में दोनों के बीच का अंतर सिर्फ चार मिनट रहा। इसके बाद डीसीपी तेजस्वी ने ट्वीट कर पुणेकरों  से पूछा है कि क्या सिर्फ चार मिनट के लिए अपनी जिंदगी को खतरे में डालना ठीक है?

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2012 बैच की आईपीएस ऑफिसर तेजस्वी सातपुते ने मीडिया को बताया कि वह शहर की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक सड़क पर यह प्रयोग करके समझना चाहती थीं कि आखिर ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करनेवालों को कितना फायदा होता है? इस प्रयोग में महज चार मिनट का अंतर नजर आया। सिर्फ चंद मिनट बचाने के लिए एक व्यक्ति अपनी जान को जोखिम में डालकर न केवल दूसरों के विलंब का कारक बनता और उनके लिए खतरा निर्माण करता है, बल्कि खुद अपराधी भी बन जाता है।

अब चंद मिनट बचाने के लिए अपनी और दूसरों के लिए जोखिम पैदा कर अपराधी बनना चाहते हैं? यह सवाल उन्होंने पुणेवासियों से किया है। कार्रवाई के डर की वजह से नियमों का पालन कराया जा सकता है लेकिन बेहतर है कि लोग इस बात को समझें कि नियम उनकी सुरक्षा के लिए हैं। उनकी कोशिश है लोग ट्रैफिक नियमों के प्रति खुद से जागरूक हों।