आरटीआई एक्टिविस्ट सतीश शेट्टी हत्याकांड; एक अनसुलझी गुत्थी

पुणे: पुणेसमाचार ऑनलाइन

आठ साल पहले पुणे के मावल तालुका के तलेगांव में घटे आरटीआई एक्टिविस्ट सतीश शेट्टी हत्याकांड की गुत्थी आज भी अनसुलझी ही है। पुणे जिला (ग्रामीण) पुलिस द्वारा इस मामले में की गई जांच पर सवाल उठने के बाद जांच की कमान केंद्रीय अन्वेषक ब्यूरो यानी सीबीआई को सौंप दी गई। स्थानीय अदालत में खाली हाथ दिखाने के बाद यह केस रीओपन किया गया। मगर इस बार भी सीबीआई के हाथ खाली ही रहे, बुधवार को शेट्टी की हत्या मामले में पुणे ज़िला सेशन कोर्ट में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दी गई। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इस मामले के प्रमुख अभियुक्त और आईआरबी इन्फ्रास्ट्रक्चर के चैयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर वीरेंद्र म्हैस्कर अन्य को क्लीन चिट दे दी। नतीजन शेट्टी हत्याकांड की गुत्थी एक अनसुलझी पहेली बन कर रह गई है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आख़िर सतीश शेट्टी को मारा किसने?

क्या था पूरा मामला?
सतीश शेट्टी महाराष्ट्र के तालेगाव दभाडे इलाके के आरटीआई कार्यकर्ता थे। वह समाजसेवी अन्ना हज़ारे के साथ भी काम कर चुके थे। 13 जनवरी 2010 को वे अपने घर के पास मृत पाए गए थे। वह सुबह वॉक पर निकले थे तो कुछ अंजान लोगों ने उन पर हमला कर दिया था। जब उन्हें बेहोशी की हालत में अस्पताल ले गए लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी और डॉक्टर ने सतीश शेट्टी को मृत घोषित कर दिया। सतीश के भाई संदीप शेट्टी ने इस मामले में आईआरबी इंफ्रास्ट्रक्चर के चेयरमैन और एमडी वीरेंद्र महिस्कर और अन्य अधिकारियों पर हत्या के आरोप लगाए थे। दरअसल हत्या से चार महीने पहले सतीश शेट्टी ने म्हैस्कर व 13 अन्य लोगों पर मावल तालुका इलाक़े में ज़मीन हड़पने के मामले के तहत एक शिकायत की थी, जिसमें म्हैस्कर और अन्य लोगों ने जाली दस्तावेज़ के आधार पर 73.88 हेक्टेयर सरकारी ज़मीन हड़पे जानेे का आरोप था।

पुणे जिला पुलिस की जांच
पुणे की ग्रामीण पुलिस के स्थानीय क्राइम जांच विभाग ने इस मामले की शुरुआती जांच की थी। तत्कालीन पुलिस निरीक्षक भाउसाहेब आंधलकर और सब इंस्पेक्टर नामदेव कौथले की टीम ने तलेगांव दाभाडे के एक वकील सहित कुल 6 लोगों को गिरफ्तार भी किया। हांलाकि बाद में सबूतों के अभाव में जल्दी ही सभी को छोड़ भी दिया गया। इसके बाद संदीप शेट्टी ने हाईकोर्ट से इस मामले की जांच सीबीआई से करवाने की अपील की।

सीबीआई की जांच
सीबीआई ने 17 अप्रैल 2010 से अपनी जांच शुरू की। अप्रैल 2010 से अगस्त 2014 तक सीबीआई ने एंटी करप्शन ब्यूरो की मदद से कुल 550 लोगों से पूछताछ की, आईआरबी की 30 संपत्तियों पर छापेमारी की, 36 लोगों का पॉलीग्राफ़ी टेस्ट किया, 200 से अधिक लोगों की कॉल रिकॉर्ड खंगाली गई। 8 अगस्त 2014 को सीबीआई ने बॉम्बे हाईकोर्ट में ज़मीन घोटाले के मामले को दोबारा खोलने के लिए अपील दायर की। यह अपील संदीप शेट्टी की अक्टूबर 2009 में दर्ज कराई गई एफआईआर के आधार पर की गई थी, लेकिन इस अपील के दायर होने के महज़ तीन दिन बाद ही 11 अगस्त 2014 को सीबीआई ने सतीश शेट्टी हत्या मामले की क्लोज़र रिपोर्ट दाख़िल कर दी और कहा कि सबूतों का आपस में तालमेल नहीं हो पा रहा है।

सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट
सीबीआई ने पुणे सेशन कोर्ट में अपनी 1000 पन्नों की क्लोज़र रिपोर्ट जमा की। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि, 6 अभियुक्तों को जांच के बाद गिरफ्तार किया गया। उनके नाम रिपोर्ट में बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं, वीरेंद्र म्हैस्कर, आईआरबी के लायसन अधिकारी जयंत डांगरे, वकील अजीत कुलकर्णी, पुणे ग्रामीण पुलिस के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर भाउसाहेब आंधलकर और सब इंस्पेक्टर नामदेव कौथले और लोनावला के डीएसपी दिलीप शिंदे। इस रिपोर्ट में डांगरे, कुलकर्णी, अधलकर और महिस्कर के बीच हुई कॉल डीटेल भी शामिल थी।

दोबारा खुली केस फिर बंद हो गई
नवंबर 2014 से जनवरी 2015 तक सीबीआई ने एक बार फिर आईआरबी की संपत्तियों पर छापेमारी की। यह छापेमारी ज़मीन घोटाले के संबंध में की गई थी, लेकिन सीबीआई को शेट्टी की हत्या के मामले से जुड़े कुछ सबूत भी इस दौरान प्राप्त हुए। इस तरह 17 जनवरी 2015 को सीबीआई ने इस मामले को दोबारा खोलने की इजाज़त मांगी। अप्रैल 2016 में सीबीआई ने इस मामले में पुलिस अधिकारी अंधलकर और कौथले को गिरफ्तार किया लेकिन उसी महीने दोनों को ज़मानत भी मिल गई। 4 जुलाई 2016 को सीबीआई ने इस मामले में अपना अंतिम आरोप पत्र दाख़िल किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट 27 मार्च 2018 को सेशन अदालत में जमा करवाई। इस रिपोर्ट में सीबीआई ने म्हैस्कर और अन्य अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी। इसके बाद बीते बुधवार यानि 18 अप्रैल को सीबीआई ने सबूतों के अभाव में अपनी क्लोज़र रिपोर्ट अदालत के सामने रख दी।