वैज्ञानिक का दावा- लीची से नहीं होता इंसेफलाइटिस, रिपोर्ट्स को किया खारिज

नई दिल्ली : समाचार ऑनलाईन – बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एड) के चलते सैकड़ों बच्चे मारे गए। बच्चों की मौत का जिम्मेदार लीची को बताया जा रहा था। लीची का कटोरा कहे जाने वाले मुजफ्फरपुर में तीन हफ्ते से लीची पर बवाल छिड़ा हुआ है। पूरे देश में लीची की बिक्री कम हो गई। लेकिन, देश के बड़े वैज्ञानिक ने इस बात से इनकार कर दिया है कि लीची से इंसेफलाइटिस होता है। इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में लीची पर शोध करने वाले संस्थान नेशनल रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ। विशालनाथ ने कहा कि लीची और इंसेफलाइटिस के बीच कोई संबंध नहीं है। आइए॥।जानते हैं कि डॉ। विशालनाथ ने और लीची और इंसेफलाइटिस के लिए मौजूद कौन-कौन से भ्रम तोड़े।

ऐसा माना जा रहा है कि लीची में मौजूद प्राकृतिक विषाक्त की वजह से बिहार में इंसेफलाइटिस हो रहा है। उससे बच्चे मर रहे हैं। कुछ रिसर्च और स्टडीज ने भी कुपोषण और लीची के प्राकृतिक विषाक्त में संबंध बताया है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? लीची का इंसेफलाइटिस से कोई लेना-देना नहीं है। लीची का जो हिस्सा हमलोग खाते हैं उसमें कोई प्राकृतिक विषाक्त नहीं होता। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोगों को लीची के बारे में गलत जानकारी दी गई है। मुजफ्फरपुर से लीची दिल्ली और मुंबई भी जाता है। देश के अन्य हिस्सों में भी भेजा जाता है। ऐसे में तो पूरे देश में इंसेफलाइटिस फैलना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

लीची बेहद पौष्टिक फल है। इसमें विटामिन-बी, कैल्सियम, आयरन, पोटेशियम, फॉस्फोरस और अन्य मिनरल्स होते हैं। मुजफ्फरपुर स्थित रिसर्च सेंटर में मुझे 11 साल हो गए, लेकिन आजतक मुझे लीची का कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखा। कुछ विशेषज्ञों ने सलाह दी थी कि लीची की वजह से इंसेफलाइटिस न हो, लेकिन गरीब परिवारों के बच्चे खाली पेट लीची खाकर सो जाते हैं। क्या खाली पेट लीची खाकर सोने से एड होता है? लीची, आम, अमरूद जैसे कई फल प्राकृतिक तौर पर अम्लीय होते हैं।

यह सलाह दी जाती है कि अम्लीय फलों को खाली पेट न खाएं। इससे कुछ दिक्कतें हो सकती हैं लेकिन इससे किसी की मौत नहीं हो सकती। लीची पूरे देश में 1 लाख हेक्टेयर जमीन पर पैदा की जाती है। मुजफ्फरपुर में सिर्फ इसका दसवां हिस्सा (8000 से 10 हजार हेक्टेयर) ही पैदा होता है। अगर लीची की वजह से बिहार में 10 साल से कम उम्र के बच्चों को इंसेफलाइटिस हो रहा है, तो यह देश के अन्य हिस्सों के बच्चों में भी फैलना चाहिए था। इससे गरीब ही क्यों अमीर परिवारों के बच्चे भी बीमार होते। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की स्टडी में सामने आया कि बच्चों ने दिन में लीची खाई थी और रात में खाना नहीं खाया। लीची में मौजूद प्राकृतिक विषाक्त हाइपोग्लाइसिन-ए ने रात भर में बच्चों के ब्लड शुगर कम कर दिया, जिससे उन्हें हाइपोग्लाइकीमिया हो गया। देखा गया कि बच्चे अगली सुबह तक बीमार पड़ गए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? लीची के बीज में मिलने वाला मिथाइल साइक्लोप्रोपिल ग्लाइसीन (एमपीसीजी) अमीने एसिड में तब्दील हो जाता है, लेकिन यह लीची के पल्प (गूदा) में नहीं पाया जाता। इसलिए सवाल यह उठता है कि क्यों कोई लीची के बीज को खाएगा और वह भी इतनी मात्रा में क्यो खाएगा।