जीवन से निराश बच्चों में जीने की आस जगा रही शीतल, ‘जोकर’ बनने के लिए मंत्रालय की नौकरी छोड़ी 

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम

लोग नाम के साथ ‘जोकर’ लगाने मात्र से ही आग-बबूला हो जाते हैं। इसे  अपमानजनक समझते हैं, लेकिन आपको जानकर ये हैरत होगी कि देश की एक लड़की, जो कतिपय मामलों में सामान्य से कई गुना ज्यादा कुशाग्र है। उसके शैक्षणिक प्रमाण-पत्रों को जोड़ दिया जाए, तो सामान्य लोगों की औसत कद से ज्यादा उसकी लंबाई हो जाती है, सरकार ओहदे के लिए बुलावा आया, तो उसे भी त्याग दिया-सिर्फ जोकर बनने के लिए।

इसलिए यूं न समझें कि जोकर बनना आसान है। आज की जिंदगी में जब लोगों का शगल ही है और को नीचा दिखाना, भला क्यों कोई अपने को नीचा दिखाना पसंद करेगा, लेकिन शीतल ने ऐसा ही किया है। डीयू से सोशियॉलजी में ग्रेजुएशन, जेएनयू से मास्टर डिग्री । फिर डीयू से एमफिल सोशियोलॉजी। इग्नू में गेस्ट लेक्चरर, उसके बाद आईपी यूनिवर्सिटी में अध्यापन। इस शैक्षणिक अर्हता को किसी वैशाखी की कतई जरूरत नहीं। सोने पे सुहागा- साल 2015 में मिनिस्ट्री में जॉब लग गई। अमेठी यूनिवर्सिटी नोएडा में सोशियॉलजी पढ़ाने लगीं, लेकिन मन बेचैन रहता था।

जनवरी 2016 में अहमदाबाद में एक विदेश से आए शख्स से मिलीं। वहां, जीवन से निराश, बीमार लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट का जीवन मंत्र लेकर लौटीं। क्लाउंस की लाफ्टर थेरेपी। यहां बता दें कि नेपाल के काठमांडू जन्मी शीतल की पांचवीं तक पढ़ाई काठमांडू में ही हुई। रोशल लाल और माला की चार संतानों में शीतल सबसे छोटी है। हर शनिवार को यह परिवार काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर जाता था और लौटते समय ओल्ड ऐज होम या अनाथालय में। वहां से ही शीतल को यह सीख मिली थी कि लोगों के जीवन में जितनी हो सके, खुशी बांटनी चाहिए। हालांकि  1996 में यह परिवार काठमांडू से हिसार चला आया।
बहरहाल,  9 जुलाई 2016 को क्लाउंसलर्स शुरू किया। फेसबुक पर पोस्ट डाला। 33 का रिस्पांस आया। पहली मर्तबा, दिल्ली मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ से अप्रूवल लिया। ईमेल एक्सचेंज हुए। वहां से रिस्पांस मिले। उन्होंने चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय गीता कॉलोनी के डाइरेक्टर से मिलवाया। परमिशन मिली।

बस क्या था- बाजार से सामान आ गए। लाल चटकीली नाक, रंग-बिरंगी घुंघराली विग अस्पताल के कॉरिडोर में मेकअप किया। लाल चटकीली नाक, रंग-बिरंगी घुंघराली विग, झालरनुमा कपड़े पहने हाथों में बैलूंस लिए बच्चों के वॉर्ड में घुसीं तो सांसें थम गईं। कमरे में दवाओं की तेज गंध। सफेद बिस्तरों पर मुरझाए हुए बच्चों के चेहरे। शरीर सुइयों और नलियों से गुदे थे। आशा निराशा में मांओं के चेहरे। सुबकियों के माहौल में ‘जोकर’ की एंट्री। पांच घंटे की परफॉर्मेंस में माहौल चेंज। उदास चेहरे खिल उठे। फिर, हर शनिवार अस्पताल। संडे को वृद्धाश्रम, अनाथलय या स्लम एरिया में जाने लगे। क्लाउंस की लॉफ्टर थैरेपी ने बच्चों के अंदर तेजी से सुधार के रिजल्ट ला दिए।

अब, दिल्ली एनीसआर ही नहीं, कश्मीर, पुणे, मणिपुर, मेघायल, बेलगाम, जयपुर, मुंबई, नोएडा से बुलाया जाने लगा है। हाल ही में लॉक डाउन में लोगों को डिप्रेशन से निकालने के लिए रैन बसेरा, राधा स्वामी, यमुना स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स में क्लाउंस किया। इसी हफ्ते मुंजाल यूनिवर्सिटी नोएडा में किया। शीतल का क्लाउंसलर्स नाम से ग्रुप है। जिसमें सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, स्टूडेंट्स, हाउस वाइफ सभी जुड़े हुए हैं।