अविश्वास प्रस्ताव के मतदान में तटस्थ रहेगी शिवसेना

नई दिल्ली। समाचार ऑनलाइन

विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस कुछ ही देर में होगी। इससे पहले भी राजनीतिक जोड़ घटाव जारी है। सभी दलों के नेताओं का संसद पहुंचने का क्रम जारी है। लोकसभा की कार्यवाही शुरू हो चुकी है और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया गया है। लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सदन में जानकारी दी कि शाम 6 बजे अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग शुरू होगी। इसी दौरान सत्तादल भाजपा के अहम सहयोगी दल शिवसेना ने अविश्वास प्रस्ताव पर तटस्थ रहने की भूमिका घोषित की है।

शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि शिवसेना के हाईकमान उद्धव ठाकरे ने शुक्रवार को संसदीय बैठक में संदेशा भिजवाया है कि, अविश्वास प्रस्ताव के मतदान पर तटस्थ रहा जाए। सरकार जनता का भरोसा खो चुकी है। सबका पता है कि अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा, मगर लोकतंत्र में सबको बोलने का अधिकार होता है। बहरहाल सियासी गलियारों में चर्चा है कि तटस्थ रहने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि अगर शिवसेना अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में आती है तो उसने मोदी सरकार का समर्थन वापस ले लिया है, यह बात साबित हो जाती। यह टालने के लिए ही शिवसेना ने तटस्थ रहने की भूमिका अपनाई है।

अगर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान शिवसेना भाजपा के समर्थन में आती तो सरकार में शामिल रहने के बाद भी लगातार की जा रही टीका-टिप्पणी या बेकार थी बेवजह थी यह बात भी साबित हो जाती। यही वजह है कि शिवसेना के समक्ष तटस्थ रहने के अलावा कोई दूसरा चारा ना रहा। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में गठबंधन टूटने के बाद से शिवसेना लगातार भाजपा और नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते आई है। राज्य की सरकार में भाजपा के साथ रहना उसकी मजबूरी है, इस बात से शिवसेना भी भली भांति परिचित है। इस वजह से भाजपा का विरोध करने के बाद ही अपना वजूद बना रह सकेगा। यह जानकर भाजपा को लगातार निशाना बनाया जाता रहा। हालांकि यह विरोध सभा, सम्मेलन और आंदोलन तक ठीक है मगर सभागृह में शिवसेना को भाजपा का साथ देना या तटस्थ रहना जरूरी है। अन्यथा बाहर विरोध भीतर समर्थन की भूमिका से पार्टी की गलत छवि निर्माण हो जाएगी।

लोकसभा में मोदी सरकार के पास जरूरी संख्या बल उपलब्ध है, अतः यह अविश्वास प्रस्ताव पारित होने की संभावना नहीं है। मगर इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस समेत तकरीबन सभी विपक्षी दल मोदी सरकार पर टूट पड़ेंगे यह निश्चित। वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी बीते 4 सालों के कामकाज का लेखाजोखा संसद और जनता के समक्ष पेश करेंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए कांग्रेस को कम समय देने का की नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार की नाकामी और 130 करोड़ जनता की समस्याओं को अधोरेखित करने का यही उचित समय है। इसके लिए हर पार्टी को कम से कम 30 मिनट का समय दिया जाना चाहिए था। सबसे बड़े विरोधी पक्ष को मात्र 38 मिनट का समय भी आ जाना गलत है। कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि, “सरकार ने सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया है। आज किसान, युवा सब परेशान हैं। ऐसे में सरकार जनता का विश्वास खो चुकी है।”