Success Story : दूसरी में पढ़ने के दौरान पिता का साया उठ गया; किसी का साथ नहीं होने के बावजूद एमपीएससी से  विशाल बने आरटीओ 

 

पुणे, 2 दिसंबर 

हर किसी की सफलता के पीछे संघर्ष होता है।  इससे डगमगाते हुए खुद की पहचान बनाने के लिए जो कोई भी प्रयास करता है उन्हें सफलता जरूर मिलती है।  इसी तरह की कहानी मोहोल तालुका के विशाल सुपेकर है।  पिता का साया उठ जाने के बाद उन्होंने खुद की एक अलग पहचान बनाई।  घर में पढाई का माहौल नहीं था और राह दिखाना वाला कोई दोस्त नहीं होने बावजूद वह आज सहायक मोटर वाहन इंस्पेक्टर (आरटीओ ) पद तक पहुंच गए है।  पिछले एक साल से वह पनवेल में कार्यरत है।

विशाल आम परिवार से आते है।  पढाई के दौरान  उनके सिर से पिता का साया उठ गया था और उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।  तब से उन्हें अपनी मां का साथ मिला।  आज उनकी उम्र 27 साल है और परिवार में मां दो बहन चारों साथ रहते है।  पिता के जाने के बाद उनके दादा ने सहारा देकर हिम्मत दी।  उनका पारिवारिक काम बंबू बांस का काम उनकी मां संभालती है।  मां को हमेशा दादा का साथ मिला।

विशाल जब आठवीं में थे तो उन्हें स्कॉलरशिप मिल गई।  लेकिन उन्हें शुरुआत में इसके  लिए बैंक अकाउंट ओपन कराने के पैसे  नहीं थे।  उस वक़्त उनकी मां ने कान की बाली बेचकर पैसे दिए।  विशाल को मां की कान की बाली बेचने के काफी बुरा लगा।  उस वक़्त उन्होंने तय किया कि अगर हम परिश्रम करते है, हमेशा काम करते है और सही समय पर आराम किया तो जीवन भर दौड़ सकते है और जीवन के शिखर तक पहुंच सकते है।  विशाल के इसी जिद्द की वजह से उनका सपना पूरा हुआ है।

विशाल घर का एकमत्र लड़का है।  उसे दसवीं में 92% अंक मिला और बारहवीं में 88% अंक मिला।  बारहवीं करने के बाद वह आगे की पढाई के लिए लातूर चले गए।  लातूर का माहौल स्पर्धा वाला होने की वजह से उन्हें शुरुआत में काफी दिक्कत हुई।  इसके बाद उन्होंने पढ़ने का टाइम और बढ़ा दिया।  आगे इंजीनियरिंग की पढाई के लिए वे पुणे आ गए।  स्कॉलरशिप मिलने की वजह से उन्हें पढाई में कोई दिक्कत नहीं हुई. कॉलेज में जब थे तब वे एक्स्ट्रा सर्कुलेटर एक्टिविटीज में भाग लिया।  इससे उनकी अलग अलग स्किल्स डेवेलप हो गई।  उन्होंने इंजीनियरिंग की पढाई 2016 में पूरी की।  इसके बाद उन्होंने स्पर्धा  परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया।  सारी जानकारी हाशिल करने के बाद तैयारी में जुट गए ।

पहली परीक्षा दी लेकिन उसमे असफल रहे।  इसके बाद छोटी छोटी नौकरी करते हुए पढाई जारी रखा।  कुछ दिनों के बाद  सहायक मोटर वाहन इंस्पेक्टर पद पर भर्ती निकली।  इस परीक्षा में वह 2018 में पास हुए।  इस सफलता से उनके परिवार की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह आगे भी सफलता हाशिल करने का प्रयास कर रहे है।

उन्होंने अपनी सफलता पर कहा कि स्पर्धा की वजह से व्यक्ति की क्षमता बढ़ती है और स्पर्धा परीक्षा की वजह से बौद्धिक गुणवत्ता बढ़ती है।  विधार्थियों को ऐसे कई परीक्षा में शामिल होना चाहिए।  परिश्रम का कोई दूसरा विकल्प नहीं है और ये किये बिना आपको कुछ नहीं मिलेगा।  अपनों के लिए जिन्होंने कष्ट किया है उनके परिश्रम को समझना चाहिए।  इस बात का ध्यान रखा तो आप कभी कम नहीं पड़ेंगे।  बड़े सपने देखे और उस सपने के पूरा  होने तक शांत नहीं बैठे।