कमल के मुकाबले कितने सफल होंगे कमलनाथ?

नीरज नैयर

मध्यप्रदेश में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है। इसी के मद्देनजर कांग्रेस ने अरुण यादव को हटाकर कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। इससे पहले माना जा रहा था कि यह ज़िम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपी जा सकती है। राज्य में कांग्रेस के कमज़ोर पड़ने के बाद से ही सिंधिया फ्रंट लाइन में आने की कोशिशों में लग गए थे। जिस तरह उन्होंने राज्य में घूम घूमकर दलितों के घर खाना खाया, उससे यह साफ़ हो गया था कि वे राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका चाहते हैं। राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाना सिंधिया के लिए अच्छा संकेत था, क्योंकि वो राहुल के करीबी माने जाते हैं। सिंधिया ने आलाकमान के फैसले पर कोई टिप्पणी तो नहीं की है, लेकिन ख़ामोशी काफी कुछ बयां कर रही है। उनके समर्थक भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि समीकरण अनुकूल होते हुए भी बात बिगड़ गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष न बनाये जाने की सबसे बड़ी वजह कांग्रेस में फैली गुटबाजी है। प्रदेश कांग्रेस का हाल ऐसा है कि कांग्रेसी ही किसी दूसरे कांग्रेसी को पनपने नहीं देते। यही वजह है कि भाजपा को जीत के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव एकतरफा ही रहे हैं।

…पर नहीं मिली सफलता
कांग्रेस ने बीच में साफ़-सुथरी छवि वाले सुरेश पचौरी को भी प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी थी। आलाकमान को उम्मीद थी कि पचौरी गुटबाजी पर लगाम लगा पाएंगे, लेकिन वो खुद गुटबाजी की भेंट चढ़ गए। लिहाजा अब जब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर बुरे दौर से गुजर रही है, वह मध्यप्रदेश भाजपा से छीनकर अपनी स्थिति को बेहतर बनाना चाहती है। इसलिए उसने कमलनाथ पर दांव खेला है। कमलनाथ के मामले में सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें दिग्विजय सिंह का भी समर्थन प्राप्त है। दिग्विजय अपने एक अलग गुट का नेतृत्व करते हैं, ऐसी स्थिति में उनके साथ आने का मतलब है गुटबाजी में कमी आना। इसके आलावा सिंधिया के मुकाबले कमलनाथ का अनुभव काफी ज्यादा है।

सीएम का चेहरा बनेंगे?
छिंदवाड़ा से सांसद कमलनाथ स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति में गहरी पकड़ रखते हैं। वह प्रदेश में कांग्रेस के लिए संसाधन दूसरे नेताओं की तुलना में ज्यादा आसानी से उपलब्ध करा पायेंगे। वैसे तो कांग्रेस ने अब तक मुख्यमंत्री को लेकर कोई जिक्र नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि कमलनाथ के नाम पर मुहर लग सकती है। क्योंकि राज्य में उनके कद जितना कोई अन्य नेता नहीं है। यदि ऐसा होता है तो धर्म-जाति को लेकर कमलनाथ की तटस्थ छवि कांग्रेस के काम आ सकती है। कांग्रेस के लिए एक और अच्छी बात यह है कि मौजूदा वक़्त में प्रदेश की भाजपा सरकार को लेकर लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है। इस गुस्से का आभास कहीं न कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या कमलनाथ इस गुस्से का फायदा उठा सकते हैं।