‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स’ प्रकाशित… प्रणब मुखर्जी के संस्मरण में कई चौंकानेवाली बातें

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम  : पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आखिरी समय में अपने संस्मरण ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स’ पूरी की थी। अब उसे प्रकाशित कर दिया गया है। चौंकानेवाली बातें सामने आईं हैं। उन्होंने इंदिरा-नेहरू, कांग्रेस, नरेंद्र मोदी, ममता बनर्जी समेत कई विषयों पर बातें की हैं।

अपने संस्मरण में उन्होंने भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों को लेकर कई विचार दिये हैं। नेपाल को लेकर प्रणब मुखर्जी ने जो लिखा है वह विस्मित करता है। उन्होंने कहा है कि, ”सभी प्रधानमंत्रियों की कार्यशैली अलग होती है। उनके अनुसार,  नेपाल राणा के शासन के बाद राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने राजशाही खत्म होने के बाद जवाहर लाल नेहरू को प्रस्ताव दिया था कि नेपाल को भारत का प्रांत बना दिया जाये। लेकिन, उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था। अगर यही मौका उनकी बेटी इंदिरा गांधी को मिला होता, तो वह इसे हाथ से नहीं जाने देतीं। वहीं, लाल बहादुर शास्त्री ने कई ऐसे फैसले भी लिये जो उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से बहुत अलग थे। एक ही पार्टी में रहने के बावजूद विदेश नीति, सुरक्षा और आंतरिक प्रशासन जैसे कई मुद्दे अलग-अलग हो सकते हैं।

प्रणब मुखर्जी ने नरेंद्र मोदी का भी जिक्र अपने संस्मरण में किया है। उन्होंने नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल को विफल बताते हुए भी सवाल खड़े किये हैं। उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री के संसद में उपस्थित रहने से ही कामकाज में फर्क पड़ता है। जवाहलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, सभी संसद सत्र के दौरान सदन में मौजूद रहते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन सभी लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

कांग्रेस के बार में प्रणब मुखर्जी ने बताया है कि  साल 2014 में कांग्रेस की हार का बड़ा कारण करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान नहीं कर पाना है। इसीलिए मध्यम स्तर के नेताओं कि सरकार बन कर यूपीए सरकार रह गयी थी।  यह भी बताया कि यूपीए में एकमत नहीं होने के कारण ही साल 2012 में ममता बनर्जी ने यूपीए-2 सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।  उनकी चेतावनी को भी नहीं सुना गया, उसके बाद वह यूपीए-2 से अलग हो गयी थीं। मीडिया में आए पुस्तक के एक अंश में पूर्व राष्ट्रपति के हवाले से कहा गया है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं का मत था कि अगर मैं 2004 में प्रधानमंत्री बन गया होता तो 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली हार टल सकती थी। हालांकि, इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हूं लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद पार्टी नेतृत्व का पॉलिटिकल फोकस खो गया। सोनिया गांधी पार्टी के मामलों को संभाल नहीं पा रही थीं। डॉक्टर मनमोहन सिंह की सदन से लंबे समय तक अनुपस्थिति के कारण अन्य सांसदों के साथ व्यक्तिगत संपर्क का अंत हो गया।