इस नेता पर है महागठबंधन को सफल बनाने की ज़िम्मेदारी

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने कसरत शुरू कर दी है. भाजपा जहां हिंदुत्व और भविष्य के सपने दिखाकर वोटरों को अपने साथ बनाये रखने की रणनीति पर काम कर रही है, वहीं विपक्षी दलों का पूरा ध्यान इस वक़्त महागठबंधन को खड़ा करने पर है. कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा के विपरीत विचारधारा वाली सभी पार्टियों को एक छतरी के नीचे लाकर मैदान में उतरा जाए. हालांकि उसकी कोशिशों में एक बड़े अवरोध के रूप में मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) उभरकर सामने आई है. ऐसा नहीं है कि मायावती इस महामिलन के खिलाफ हैं, बल्कि उन्हें सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस के गणित से आपत्ति रही है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसी वजह से ‘हाथ’ और ‘हाथी’ एक साथ नहीं आ सके.

बहरहाल अब एक ऐसे नेता को महागठबंधन के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने का दायित्व सौंपा गया है, जिसके बात सभी दलों में सुनी जाती है. और वो हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव. कुछ सालों पहले इस तरह की भूमिका अमर सिंह निभाया करते थे. अमर सिंह के बारे में कहा जाता था कि उन्हें दुश्मनों के बीच भी दोस्त ढूंढ निकालने की कला आती है. लेकिन बाप-बेटा यानी मुलायम और अखिलेश के आपसी विवाद ने सिंह के राजनीतिक करियर पर ही फुलस्टॉप लगा दिया. वर्तमान में शरद यादव दोस्त तलाशते नज़र आ रहे हैं. हालांकि, यह खेल पर्दे के पीछे चल रहा है. सामने आकर न यादव ने और न ही किसी अन्य दल ने इस बात की पुष्टि की है कि विरोधी पार्टियों को एकमंच पर माने की ज़िम्मेदारी शरद यादव पर है.

जिस तरह से इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, उसी तरह से सियासत का गुणाभाग भी सामने आ ही जाता है. और राजनीतिक पंडित यह आंकलन लगा चुके हैं कि यादव की सक्रियता के पीछे आखिर वजह क्या है. वह राजनीतिक दलों से संपर्क साधकर उनसे निजी स्वार्थों को त्यागकर एक साथ आने की अपील कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मुलाकात इसी अपील का हिस्सा है. इस मुलाकात की पटकथा शरद यादव और चंद्रबाबू नायडू की बैठक में लिखी गई थी. बैठक में दोनों नेताओं ने तय किया था कि वे विपक्षी दलों को नए सिरे से एक मंच पर लाने की कोशिश करेंगे. इसके लिए दोनों नेता बारी-बारी से विभिन्न पार्टी के नेताओं से मुलाकात करेंगे.

इससे पहले महागठबंधन की संभावनाओं को तलाशने के इरादे से ही नायडू ने मायावती से मुलाकात की थी. इस दौरान नायडू के साथ आंध्र प्रदेश के वित्त मंत्री वाइ्र रामकृष्णुडु और उनकी पार्टी के कुछ सांसद भी मौजूद थे. इस साल मार्च तक तेलुगु देशम पार्टी एनडीए का हिस्सा थी. टीडीपी केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन से यह आरोप लगाते हुए अलग हो गयी थी कि सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिये जाने की मांग को खारिज कर दिया. राजनीति के जानकार मानते हैं कि महागठबंधन की सफलता के लिए बहुजन समाज पार्टी का इसमें होना जरूरी है. पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और बसपा के बीच जिस तरह के रिश्ते सामने आए हैं, उससे महागठबंधन की संभावनाओं को झटका लगा है. छत्तीसगढ़ में जहां बसपा कांग्रेस से अलग हुए अजित जोगी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है, इसी तरह मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है. हालांकि, माना जा रहा है कि शरद यादव सभी दलों को एकसाथ लाने में सफल हो सकते हैं. वैसे, इस बारे में तो वक़्त ही स्थिति स्पष्ट कर पाएगा.