मार्मिक: 12 वर्षों से लापता भीमसिंह वापस लौटा अपने घर,  राजस्थान के किसान मेघराज मीणा बने बजरंगी भाईजान!

मोनिका पंवार वर्मा / पुनीत पंवार 

मप्र; समाचार ऑनलाइन – आज की भागमभाग भरी दुनिया में हम मुश्किल से अपनों के लिए समय निकाल पाते हैं. ऐसे में किसी दूसरे के लिए कुछ कर पाना तो दूर की बात है. फिर भी इस दौर में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनकी वजह से आज भी मानवता जीवित है. इसका ताजा उदाहरण खरगोन जिले (मध्यप्रदेश) में स्थित झिरन्या तहसील के एक छोटे से आदिवासी कस्बे काठियाबंधान में देखने को मिला है. यह संपूर्ण घटनाक्रम फिल्म बजरंगी भाईजान से मेल खाता है.

यहाँ से 12 वर्ष पूर्व लापता हुआ मानसिक रूप से पीड़ित भीमसिंह पिता खुसरिया तड़वी (उम्र 30 वर्ष) सकुशल अपने घर लौट आया है, जिसका पूरा श्रेय राजस्थान के कोटा जिले के छोटे से गांव मामोर के रहने वाले किसान मेघराज मीणा को जाता है. मीणा ने भीमसिंह को दर-दर भटकते हुए देखा तो, उसे अपने घर ले आए और खुद के बेटे की तरह उसका पालन-पोषण करने लगे. इस तरह मीणा उसके जीवन के रियल बजरंगी भाई जान बन गए.

माता-पिता ने बेटे को समझ लिया था मृत

परिजनों ने भीमसिंह को मृत समझकर उसका नुक्ता (मृत्यु-भोज) कार्यक्रम भी कर दिया था. उसके भाई मदन ने बताया कि, वह झिरन्या मार्केट से गुम हो गया था. हमें अब मीणा से पता चला है कि वह भटकते हुए राजस्थान ज़ा पहुंच गया था.

ख़ुशी से फुले नहीं समां रहें माँ- बाप का है यह कहना…

उसकी मां जानूबाई 60 वर्ष ने बताया कि, “मैं आज बहुत खुश हूं. इतने वर्ष बेटे के बिना हमने कोई त्यौहार नहीं मनाया। वहीं पिता खुसरिया 65 वर्ष का कहना है कि, “बेटे भीमसिंह को ढूंढने के लिए मैंने एक दर्जन से अधिक बकरे बकरियों को बेच दिया था। जब हम और पुलिस उसे ढूंढ नहीं पाए तो हमने समझ लिया कि उसकी मौत हो चुकी है। इसलिए हमने 3 वर्ष बाद ही उसका पिंड दान भी कर दिया था।

उसके माता-पिता से मिलाना बन गया था, मीणा के जीवन का उद्देश्य 

 

भीमसिंह के जीवन में भी सलमान के रूप में किसान मेघराज मीणा आये। उन्होंने बताया कि मैंने 8 वर्षों तक उसे अपने पास बेटे की तरह रखा और उसकी दिनचर्या से लेकर खानपान की ओर ध्यान दिया। वह मानसिक रूप से पीड़ित है, इसलिए वह कुछ बोलता नही था। इस दौरान वे लगातार उसके गाँव की तलाश करते रहे. मीणा ने बताया कि,एक दिन अचानक उसने आदिवासी भाषा में ” झिरन्या हाट म जाउणो छे,पान-सुपारी खाउणो छे” गाना गाया। बस फिर क्या था मैंने झिरन्या गाँव को इंटरनेट पर खोजना शुरू कर दिया. मीणा का कहना है कि, फिर मुझे इंटरनेट पर ही झिरन्या गाँव मिल गया. तभी मैंने ठान लिया कि अब उसे उसके परिजनों तक पहुंचाकर ही दम लूंगा। अंततः उनके प्रयासों को कामयाबी मिली और उन्होंने भीमसिंह को उसके घर पहुंचाकर ही राहत की सांस ली है।

इंटरनेट से भीमसिंह के इलाके के सीईओ का नंबर निकाल कर किया संपर्क  

मैं सदैव यह सोचकर चिंतित रहता था कि, मेरी मृत्यु के बाद इसका क्या होगा ? मैंने इंटरनेट पर सर्च करवाकर स्थानीय सीईओ महेंद्रकुमार श्रीवास्तव को फोन पर सूचना दी और उसका फोटो भी भेज दिया।  श्रीवास्तव ने बताया कि, “मैंने भीमसिंह के गांव जाकर उसके माता-पिता एवं परिजनों से मुलाकात की और उन्होंने अपने बेटे का फोटो पहचान लिया है। इसके बाद उसके परिजनों में बड़ा भाई मदन, हमीर वास्कले,लक्ष्मण गटू और दो पंचायत सचिव लालू पवार एवं कमल खांडे के साथ राजस्थान जाकर उसे सकुशल अपने साथ ले आए।“

भीमसिंह के गाँववालों ने किया मीणा का सम्मान

इस खुशी के मौके पर ग्राम पंचायत के सरपंच गोरेलाल वास्कले ने “बजरंगी भाईजान” के समान उभरे मेघराज मीणा को यहा आमंत्रित कर उनका सम्मान किया। इस दौरान मीणा ने रूंधे गले से कहा कि, मुझसे ज्यादा भीमसिंह को उसके माता-पिता और परिजनों की आवश्यकता थी। इसलिए मैंने उसे उसके मां-बाप से मिलाने का संकल्प लिया था।

इस अवसर पर  विधायिका झूमा सोलंकी, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी (विमुक्त एवं घुमक्कड़ प्रकोष्ठ) भोपाल के प्रदेश उपाध्यक्ष मंगलम पंवार, सरपंच धूमसिंह पटेल और सीईओ महेंद्र कुमार श्रीवास्तव भी उपस्थित ग्रामीण जन उपस्थित थे।

फोटो कैप्शन-

राजस्थान के किसान मेघराज मीणा, भीम सिंह औऱ भीम सिंह के माता पिता