मुंबई : समाचार ऑनलाईन – शहापुर तालुका के आवरे ग्राम पंचायत की सीमा में पड़ने वाले आदिवासी क्षेत्र जांभूलपाड़ा में करीब 30 से 35 घर है जिनमें 150 से 200 लोग रहते है । इस गांव से बाहर जाने के लिए रोड नहीं है । जंगल से एक से डेढ़ किलोमीटर तक पैदल चलने पर लोहे की पुल है। इस पुल का उपयोग कर गांव के लोग बाहर जाते है. लेकिन यह लोहे की पुल 40 से 45 वर्ष पुरानी है और कमजोर हो चुकी है । इस वजह से इस पुल का अधिकांश हिस्सा ढह गया है। यह पुल बेहद खतरनाक हो गया है । इसके बावजूद यहां इ लोग और बच्चे इसका उपयोग कर रहे है । खास कर स्कूल जाने वाले बच्चे इस पुल का उपयोग करते है. इस वजह से उनके माता-पिता हमेशा घबराये रहते है. अभिभावकों के मन में डर बैठा रहता है।
गांव से निकलने का यही एकमात्र पुल है और वह भी खतरनाक है । यहां पर ऊपर से पानी बह रहा है । इससे जाने के लिए कमर तक में डूब कर जाना पड़ता है । इस तरह से यहां के लोग और विधार्थी अपनी जान जोखिम में डाल कर
रास्ता तय करते है।
सांप, बिच्छू काटने का डर बना रहता है
जंगल के रास्ते से जाने की वजह से हमेशा सांप, बिच्छू के काटने का डर बना रहता है । आवरे गांव के पास एक कंक्रीट का पुल है । लेकिन वहां तक जाने के लिए गांव से सड़क नहीं है । जंगल से जाने पर करीब ढाई से तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है ।
रास्ते को बनाने का कई बार आश्वासन दिया गया
यहां के नेताओं ने कई बार सड़क बनाने का आश्वासन दिया है लेकिन आज तक सड़क नहीं बनी । इस सड़क का बारिश में बुरा हाल है । यहां पर हेल्थ की दिक्कत होने पर ढाई से तीन किलोमीटर चलकर स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है । ऐसे में गर्भवती महिला के परेशानी में पड़ने की संभावना रहती है।
24 विधार्थियों के लिए 2 शिक्षक
यहां के विधार्थी जिला परिषद् के पहली से पांचवी तक के स्कूल में पड़ते है । 24 विधार्थियों के लिए स्कूल में दो शिक्षक है। सड़क की परेशानी की वजह से शिक्षकों को कभी अभी विधार्थियों को घर तक पहुंचना पड़ता है।