मोदी सरकार की ‘इस’ मुहीम से बंजर भूमि बनेगी उपजाऊ और लाखों लोगों को मिलेगा रोजगार, जानें

समाचार ऑनलाइन – देश के किसान अपनी फसलों के लिए रासायनिक दवाइयां व खाद का इस्तेमाल करते हैं, जिसके दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर तो पड़ते ही हैं, साथ ही कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति भी प्रभावित होती है. पेस्टीसाइड या रासायनिक दवाइयों के दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए मोदी सरकार अब प्राकृतिक खेती यानी आर्गेनिक फार्मिंग पर जोर दे रही है.

इस उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा साल 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को खेती लायक बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके मद्देनजर लगभग 75 लाख लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद भी जताई जा रही है.

कृषि मंत्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने जारी किया एटलस

केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं कृषि मंत्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर द्वारा यह एटलस जारी किया गया है. इसे एटलस भूमि संसाधन विभाग और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) के सहयोग से बनाया गया है.

सितंबर में हुआ था जैविक खेती के इस्तेमाल से बंजर भूमि को उपयोगी बनाने पर मंथन

बता दें कि ग्रेटर नोएडा में सितंबर के पहले और दूसरे सप्ताह में एक वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसका मुख्य बिन्दू बंजर यानी खराब जमीन को उपजाऊ बनाने था. इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला था कि, इस संकट से उबरने के लिए जैविक खेती महत्वपूर्ण साबित हों सकती है.

सरकार प्रति हेक्टेयर देगी 50 हजार रुपए

इसे ‘जीरो’ बजट खेती भी कहा जा सकता है. क्योंकी इसमें जीरो बजट खेती में जरूरी बीज, खाद-पानी आदि का इंतजाम प्राकृतिक रूप से ही किया जाता है व बिना खर्च कर किसान शुद्ध फसल पा सकते हैं. साथ ही मुनाफा भी अधिक पा सकते हैं. इस आर्गेनिक या प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार किसानों को प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपए देने को तैयार है. केंद्र सरकार ने अपनी इस खास योजना का नाम ‘परम्परागत कृषि विकास योजना’ रखा है.

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किया है इस योजना का ऐलान

बता दें कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी 5 जुलाई को अपने पहले फुल बजट में ‘जीरो बजट’ खेती  का एलान किया है. इसके अलावा मोदी भी 15 अगस्त को किसानों से केमिकल और पेस्टिसाइड का कम इस्तेमाल करने की सलाह दे चुके हैं. मोदी ने देश के 14.5 करोड़ किसानों से कहा था कि, किसान के रूप में हमें धरती मां को बीमार करने का अधिकार नही है.

इस योजना के अंतर्गत किसान को तीन साल के लिए प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपये की सहायता दी जा रही है.

जानें इस योजना के बारें में…

–    इस योजना के अंतर्गत किसानों को जैविक खाद, जैविक कीटनाशकों और वर्मी कंपोस्ट आदि खरीदने के लिए 31 हजार रुपए (61%) दिए जाते हैं.

–      मिशन आर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ इस्टर्न रीजन के अंतर्गत किसानों को जैविक इनपुट खरीदने के लिए 3 साल में प्रति हेक्टेयर 7500 रुपये की मदद उपलब्ध कराई जा रही है.

–    स्वायल हेल्थ मैनेजमेंट के अंतर्गत प्राइवेट एजेंसियों को नाबार्ड के जरिए प्रति यूनिट 63 लाख रुपये लागत सीमा पर 33 फीसदी आर्थिक मदद दी जा रही है.

–    इस खेती में रासायनिक कीटनाशक और रासायनिक खादों  का इस्तेमाल नहीं होता.

ऐसे मिलता है जैविक खेती का सर्टिफिकेट

जैविक खेती का सर्टिफिकेट पाने के लिए आवेदन करना होता है और फीस भी अदा करनी पडती है.  सर्टिफिकेट जारी करने से पहले आपके खेत की मिट्टी, खाद, बीज, बोआई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग और भंडारण जैसे चींजों की जाँच की जाती है. इससे साबित होता है कि आपने जैविक सामग्री इस्तेमाल की है. उसके बाद ही आप जैविक होने का सर्टिफिकेट पा सकते हैं. इसके बाद अपने उत्पाद को मार्केट में ‘जैविक उत्पाद’  के रूप में बेचा जा सकता है. एपिडा ने आर्गेनिक फूड की सैंपलिंग और एनालिसिस के लिए एपिडा ने 19 एजेंसियों को मान्यता दी है.

किसानों को ऊपज कम होने का सता रहा है डर

हालाँकि मोदी सरकार आर्गेनिक खेती के लिए किसानों को आर्थिक सहायता दे रही है, लेकिन किसानों को डर है कि, रासायनिक खादों का इस्तेमाल न करने से फसल की ऊपज कम ना हो जाए. वहीं  अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) ने भारत व चीन में किए गए अध्ययनों के आधार पर एक रिपोर्ट पेश की है. इसमें उन्होंने बताया है कि, जैविक खेती करने से किसानों की आय में काफी बढ़ोत्तरी होती है. नेशनल सेंटर ऑफ आर्गेनिक फार्मिंग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है.