‘कमजोर इंटेल, सीमित एनएसजी संसाधनों से आतंक के खिलाफ भारत की जंग प्रभावित’

न्यूयॉर्क (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाइन – अमेरिका ने कहा है कि एजेंसियों द्वारा खुफिया जानकारी साझा करने में कमजोर होना और राष्ट्रीय सुरक्षा बल (एनएसजी) के सीमित संसाधनों के कारण भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई प्रभावित होती है।

वैश्विक आतंकवाद पर विदेश विभाग के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, “कठिन प्रशिक्षण के बावजूद एनएसजी की तत्काल प्रतिक्रिया देने की क्षमता भारत जैसे विशाल देश को देखते हुए उसकी छोटी संख्या और एनएसजी की सीमित स्वतंत्र रसद क्षमता के कारण कहीं ना कहीं सीमित हैं।”

रिपोर्ट में कहा गया, “खुफिया तंत्र और सूचना साझा करने वाले तंत्र में अनवरत कमजोरी से राज्य तथा केंद्रीय कानूनी एजेंसियों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।”

‘कंट्री रिपोर्ट्स ऑन टैरेरिज्म फॉर 2018’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “ज्यादातर भारतीय राज्यों ने अपने खुद के राज्य स्तरीय एमएसीज (बहु-एजेंसी केंद्र) स्थापित किए हैं और भारत की विभिन्न सरकारी एजेंसियों को आतंकवाद पर काफी हद तक सटीक जानकारी दे रहे हैं।”

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि मुंबई में 2008 हमलों के लिे जिम्मेदार पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद में अभी भी भारत और अफगानिस्तान में अपने लक्ष्यों पर हमला करने की क्षमता और मंशा है।

अमेरिका के शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी अधिकारी नाथन सेल्स ने कहा कि साल 2018 में दुनियाभर के ज्यादातर आतंकवादी हमले (लगभग 85 प्रतिशत) तीन क्षेत्रों- दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उप-सहारा अफ्रीका में हुए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वाशिंगटन और नई दिल्ली में आतंकवाद के खिलाफ जंग में सहयोग बढ़ गया है और पिछले साल मार्च में अमेरिका-भारत आतंकवाद-रोधी संयुक्त कार्य समूह ने दुनियाभर में आतंकवादी संगठनों से संभावित खतरों की समीक्षा की थी।

रिपोर्ट में कहा गया कि कैबिनेट स्तर की सामरिक और रक्षा अधिकारियों की पिछले साल हुई पहली दो प्लस दो वार्ता के दौरान दोनों देशों ने ज्ञात और संदिग्ध आतंकवादियों के बारे में साझा जानकारी बढ़ाने की और टैरर फंडिंग के खिलाफ लड़ाई करने वाले संयुक्त राष्ट्र तथा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) में मौजूदा सहयोग को बढ़ाने की इच्छा जताई थी।

दो प्लस दो बैठक में उस समय रक्षा मंत्रालय संभाल रहीं निर्मला सीतारमण और दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भारत तथा विदेश मंत्री माइक पोंपियो और तत्कालीन रक्षा सचिव जेम्स मेटिस ने अमेरिका की अगुआई की थी।