श्रीलंका में आखिर हो क्या रहा है, क्यों चिंतित है भारत?

कोलंबो| समाचार ऑनलाइन – श्रीलंका में चल रही राजनीतिक उथलपुथल पर इस वक़्त दुनियाभर की निगाहें हैं, लेकिन भारत और चीन सबसे ज्यादा चिंतित हैं. क्योंकि श्रीलंका में बनने वाली सरकार से दोनों के सामरिक हित जुड़े हैं. महिंदा राजपक्षे का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा रहा है, ऐसे में जब राष्ट्रपति सिरीसेना ने रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर राजपक्षे को सत्ता सौंपी तो बीजिंग की चेहरे पर ख़ुशी झलक आई. हालांकि, जैसे ही स्पीकर जयसूर्या ने राष्ट्रपति के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए रानिल को फिर से पीएम नियुक्त किया, ख़ुशी बीजिंग से चलकर नई दिल्ली पहुँच गई. सिरीसेना ने फ़िलहाल 16 नवंबर तक संसद को भंग कर दिया, ऐसा इसलिए किया गया है ताकि राजपक्षे को बहुमत जुटाने का वक़्त मिल जाए. विक्रमसिंघे ने बहुमत होने का दावा किया है, इसलिए उन्हें आसानी से नहीं हटाया जा सकता, यही वजह है कि सिरीसेना राजपक्षे को बहुमत के लिए ज़रूरी आंकड़े जुटाने का मौका दे रहे हैं.

श्रीलंका का राजनीतिक और संवैधानिक ढांचा भारत की तुलना में अलग है. भारत में राष्ट्रपति का पद संवैधानिक और प्रतीकात्मक है, लेकिन श्रीलंका में राष्ट्रपति के पास असीम ताकत होती है. यहाँ कैबिनेट का प्रमुख प्रधानमंत्री हकीकत में राष्ट्रपति के डेप्युटी के तौर पर काम करता है. और राजनीतिक संकट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच चल रहे संघर्ष की वजह से ही उत्पन्न हुआ है. सिरीसेना और महिंदा राजपक्षे के पास इस वक्त 95 सीट हैं और यह बहुमत से कम है. जबकि विक्रमसिंघे के पास 106 सीट हैं और यह बहुमत से सिर्फ 7 सीट कम है. सिरीसेना और राजपक्षे लंबे समय तक राजनीतिक सहयोगी रह चुके हैं. सिरीसेना राजपक्षे की सरकार में स्वास्थ्यमंत्री थे, हालाँकि बाद में मतभेद बढ़ने पर सिरीसेना ने अपनी अलग पार्टी बनाई और 2015 में राजपक्षे को सत्ता से बेदखल कर दिया. वैसे तो विक्रमसिंघे और सिरीसेना के बीच भी राजनीतिक मतभेद रहे हैं, लेकिन दोनों राजपक्षे को हटाने के लिए एकसाथ आये थे. मगर सत्ता में आते ही इनके मतभेद खुलकर सामने आ गए.

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महिंदा राजपक्षे भी पहले भारत के पक्षधर माने जाते थे, लेकिन अचानक से उनका झुकाव चीन की ओर बढ़ गया. राजपक्षे के 2 बार के कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में निर्माण परियोजनाओं भारी निवेश किया था. इसके उलट विक्रमसिंघे सरकार ने बढ़ते कर्ज को देखते हुए चीन के कई प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी और भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. उनके इस कदम से भी राष्ट्रपति के साथ उनके मनमुटाव को हवा मिली. वैसे, अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में राजपक्षे का जीतना तय माना जा रहा है. हालांकि, श्रीलंका में 2 बार ही राष्ट्रपति बनने की अधिकतम सीमा तय है और राजपक्षे इस तक पहुँच चुके हैं, लेकिन माना जा रहा है कि उन्हें एक और मौका देने के लिए इसमें बदलाव किया जा सकता है.

क्या कहता है संविधान?

इस राजनीतिक घमासान पर अदालत ही रोक लगा सकती है. देश के संविधान के अनुसारराष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति का पूरा अधिकार हैलेकिन वह उसे बहुमत होने की सूरत में नहीं हटा सकता. देश की 225 सीटों वाली संसद में बहुमत के लिए 113 सीट चाहिए. अगर राष्ट्रपति संसद को भंग ही रखते हैं तो शायद हो सकता है कि राजपक्षे बहुमत जुटा लें. ऐसी सूरत में विक्रमसिंघे को सत्ता से बाहर बैठने पड़ सकता है.