पांच राज्यों के चुनावों में क्या रहा मुस्लिम प्रतिनिधित्व?

पुणे: समाचार ऑनलाइन (बसित शेख) पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीतकर आने वाले प्रत्याशियों में मुस्लिमों की संख्या बेहद सीमित है। लिहाजा ये सवाल फिर खड़ा हो गया है कि आखिर राजनीतिक दल सत्ता में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने से कतराते क्यों हैं? आंकड़ों पर गौर फ़रमाया जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि बड़ी-बड़ी बातें करने वालीं पार्टियाँ असलियत में उम्मीदवारों का चयन करते वक़्त मुसलमानों को काफी हद तक नज़र अंदाज़ कर देती हैं।

तेलंगाना में मुस्लिम आबादी 12.7 फ़ीसदी, राजस्थान में 9.07, मध्य प्रदेश में 6.57, छत्तीसगढ़ में 2.02 और मिजोरम में 1.35 फीसदी है। अब सीटों की बात करें तो तेलंगाना में 119, राजस्थान में 200, मध्य प्रदेश में 230, छत्तीसगढ़ में 90 और मिजोरम में 40 विधानसभा सीटें हैं।

मुस्लिम आबादी के हिसाब से तेलंगाना (119*12.7/100=15.11) में मुस्लिम विधायकों की संख्या 15 होनी चाहिए। राजस्थान (200*9.07/100=18.14) में 18, मध्य प्रदेश (230*6.57/100=15.11) में 15, छत्तीसगढ़ (90*2.02/100=1.81) में 1-2 और मिजोरम (40*1.35/100=0.54) में 0-1 होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो कुल 679 (119+200+230+90+40=679) सीटों पर मुस्लिम विधायकों की संख्या 50 (15+18+15+1 या 2+0 या 1=50) होनी चाहिए, यानी कुल का 7.3 प्रतिशत। मगर पांचों राज्यों में महज .7 फीसदी मुस्लिम प्रतिनिधि चुनकर आए हैं। हालांकि, द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि इन राज्यों में 2013 के मुक़ाबले इस बार मुस्लिम प्रतिनिधत्व में बढ़ोत्तरी हुई है।

राजस्थान में मुस्लिम विधायकों की संख्या 2 से बढ़कर 8 हो गई है। मध्य प्रदेश में ये संख्या एक से बढ़कर दो हुई है, वहीं छत्तीसगढ़ में ये इज़ाफ़ा शून्य से एक का हुआ है। जबकि तेलंगाना और मिजोरम में कोई बदलाव नहीं हुआ है। तेलंगाना में 8 और मिजोरम में शून्य के साथ स्थिति पूर्ववत है। ये बेहद अजीब है कि 7.3 फीसदी (50) के बजाए 2.7 फीसदी (19) मुस्लिम विधायक चुनकर आ रहे हैं, और इस आंकड़े को सम्मानजनक बताया जा रहा है।

जानकर मानते हैं कि सांस्थानिक तौर पर मुस्लिम प्रतिनिधित्व कम रखने की साजिश रची जाती है, ये सबकुछ डिलिमिटेशन कमीशन से कराया जाता है, जिसके फ़ैसले को अदालत में चैलेंज़ नहीं किया जा सकता। असम के करीमगंज लोकसभा क्षेत्र में 45 फ़ीसदी मुस्लिम वोटर हैं और ये सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई। इसी तरह उत्तर प्रदेश के नगीना और बहराइच लोकसभा क्षेत्रों में 41.71 और 34.83 प्रतिशत मतदाता हैं, ये दोनों सीटें भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।

सच्चर कमेटी ने मुसलमानों के शैक्षणिक और सामाजिक स्थिति का जायज़ा लिया था, लेकिन उसमें एक चैप्टर मुसलमानों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी है। जिसमें बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी वाली सीटों को आरक्षित कर दिए जाने का ब्यौरा दिया गया है।

सच्चर कमेटी के मेंबर सेक्रेटरी रहे अबु सालेह शरीफ़ ने कुछ महीने पहले एक कार्यक्रम में कहा था कि जब वो रिपोर्ट इकट्ठा कर रहे थे तब योगेंद्र यादव ने उनसे मुलाक़ात करके ये सलाह दी थी कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर भी आप रिपोर्ट तैयार करें, लेकिन उनका कहना था कि क़ानूनी तौर पर हमारे हाथ बंधे थे और वक़्त भी इसकी इजाज़त नहीं दे रहा था,इसलिए ये काम नहीं हो सका।