जयललिता की तरह करुणानिधि को क्यों दफ़नाया जा रहा है?

जयललिता के पार्थिव शरीर को जब क़ब्र में उतारा जा रहा था, तो अधिकतर लोगों के मन में यह सवाल था कि आखिर ऐसा क्यों? क्यों, हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार उनका दाह संस्कार नहीं किया जा रहा, कुछ ऐसा ही सवाल तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि के निधन के बाद भी खड़ा हो गया है। करुणानिधि को भी दफ़नाया जाएगा। मंगलवार शाम करुणानिधि का चेन्नई के कावेरी अस्पातल में निधन हो गया। वे 94 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे।

दरअसल, जयललिता और करुणानिधि में एक बात कॉमन थी कि द्रविड़ आंदोलन के जुड़े थे। इस आंदोलन का हिस्सा बनने वाले हिंदू धर्म की किसी ब्राह्मणवादी परंपरा और रस्म में यक़ीन नहीं रखते। जयललिता एक द्रविड़ पार्टी की प्रमुख थीं, जिसकी नींव ब्राह्मणवाद के विरोध के लिए पड़ी थी और करुणानिधि भी इस आंदोलन से जुड़े रहे हैं, इसलिए उन्हें भी दफ़नाया जाएगा।

सामान्य हिंदू परंपरा की मुखालफत करने वाले इस आंदोलन के नेता अपने नाम के साथ जातिसूचक टाइटल इस्तेमाल करने में भी विश्वास नहीं रखते। जयललिता से पहले एमजी रामचंद्रन को भी दफ़नाया गया था। उनकी कब्र के नज़दीक ही द्रविड़ आंदोलन के प्रमुख नेता रहे एवं डीएमके संस्थापक अन्नादुरै की भी कब्र है। अन्नादुरै को तमिलनाडु के पहले द्रविड़ मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त है।

कम ही लोग जानते हैं कि एमजी रामचंद्रन पहले डीएमके का हिस्सा थे, लेकिन अन्नादुरै की मौत के बाद जब पार्टी की कमान करुणानिधि को सौंपी गई, तो उन्हें इससे आघात लगा और कुछ सालों के बाद उसने पार्टी से नाता तोड़ लिया। उस वक़्त ये कहा जाने लगा था कि डीएमके छोड़ने का निर्णय उनके राजनीतिक जीवन में फुलस्टॉप लगा देगा, मगर उन्होंने ऐसी सभी आशंकाओं को गलत साबित किया। रामचंद्रन ने एआईएडीएमके की नींव रखी और राज्य की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कायमाब रहे।