आडवाणी को लोकसभा चुनाव क्यों लड़ाना चाहते हैं मोदी?

भाजपा में हाशिये पर जा चुके लालकृष्ण आडवाणी एकदम से फिर चर्चा में आ गए हैं। ये चर्चा शुरू हुई है उस खबर से जिसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आडवाणी को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरते देखना चाहते हैं। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि भाजपा ने अपने सांसदों-विधायकों के लिए उम्र की बंदिश लगाई है, यानी एक निश्चित उम्र के बाद कोई नेता चुनाव नहीं लड़ सकता। लेकिन आडवाणी के मामले में पार्टी इस बंदिश को तोड़ने के लिए भी तैयार है। बांग्ला अखबार आनंदबाजार पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि आडवाणी अगला लोकसभा चुनाव भी लड़ें। रिपोर्ट के मुताबिक,मुरली मनोहर जोशी जैसे दूसरे वरिष्ठ नेताओं को भी पार्टी आगामी चुनाव में उतार सकती है।

घर जाकर की मुलाकात
रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल ही में पीएम मोदी ने 90 वर्षीय आडवाणी से दिल्ली के पृथ्वीराज रोड पर स्थित उनके आवास पर जाकर मुलाकात भी की, वहीं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी यह प्रस्ताव लेकर उनसे मिलने गए थे। आडवाणी ने पिछले लोकसभा चुनाव में गुजरात की गांधीनगर सीट से जीत दर्ज की थी, हालांकि उसके बाद वह पार्टी में हाशिये पर ही हैं। आडवाणी और जोशी को भाजपा संसदीय बोर्ड में भी जगह नहीं दी गई। दोनों को पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया, जिसमें उनके अलावा पीएम मोदी,गृह मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह भी शामिल हैं।

यह है वजह
ऐसे में बुजुर्ग हो चुके नेताओं को लेकर भाजपा की रणनीति के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि पार्टी उम्मीदवारों की उम्र की जगह उनकी जीत की संभावनाओं को ध्यान में रखा जा रहा है। लेकिन इसके पीछे की असली वजह कुछ और ही है। जिस तरह से पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट आई है और जिस तरह से सहयोगी एक के बाद एक भाजपा का साथ छोड़ कर जा रहे हैं, उससे आलाकमान आशंकित है। लिहाजा मोदी चाहते हैं कि जो भी नेता सीट निकालने की काबिलियत रखता है उसे अगले चुनाव के लिए तैयार किया जाए। इसके लिए मोदी व्यक्तिगत मतभेदों को भी दरकिनार करने के लिए तैयार हैं। यह सर्वविदित है कि मोदी और आडवाणी में महज मतभेद ही नहीं मनभेद भी हैं।

भविष्य में पड़ेगी ज़रूरत
पिछले कुछ वक़्त से राजग के कुछ सहयोगी भाजपा से नाराज हैं। चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी जहां राजग से अलग हो गई, वहीं शिवसेना और जेडीयू भी अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।  उधर भाजपा विरोधी दल राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की कोशिशों तेज़ करते दिख रहे हैं। ऐसे में भाजपा को आडवाणी जैसे नेताओं की ज़रूरत पड़ने वाली है, जो अपने अनुभव के आधार पर रूठे सहयोगियों को मना सकें और विरोधियों की काट के तरीके भी सुझा सकें। यही वजह है कि अचानक ही मोदी को आडवाणी की याद आने लगी है।