क्या राव के नेतृत्त्व में निष्पक्ष रह पाएगी सीबीआई?

नई दिल्ली | समाचार ऑनलाइन – सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजे जाने के बाद एम नागेश्वर राव को अंतरिम रूप से जांच एजेंसी की कमान सौंपी गई है. लेकिन सरकार के इस फैसले से सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या सीबीआई निष्पक्ष रूप से काम कर पायेगी? ऐसा इसलिए क्योंकि राव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाते हैं. संघ के अहम् नेताओं के साथ उनका उठाना-बैठने है. राव के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह बीफ निर्यात के सख्त खिलाफ हैं, साथ ही हिंदूवादी एजेंडे के भी हिमायती हैं.

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हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट राव 2016 में सीबीआई से जुड़े. अंतरिम डायरेक्टर बनाए जाने से पहले वह जॉइंट डायरेक्टर की ज़िम्मेदारी संभाल रहे थे. हिंदू पुनर्जागरण से जुड़े विषयों में उनकी खासी दिलचस्पी है. इसके अलावा राव इंडिया फाउंडेशन और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भी शामिल होते रहे हैं. संघ के रास्ते से भाजपा में प्रवेश करने वाले राम माधव से उनके करीबी संबंध बताए जाते हैं. ऐसे में यह सवाल उठाना लाज़मी है कि क्या सीबीआई ऐसे मामलों पर निष्पक्ष रूप से काम कर पाएगी, जिनका सीधा जुड़ाव भाजपा या संघ से है या जो सरकारी हितों को प्रभावित करते हैं?

क्या है वर्मा की याचिका में?

सीबीआई के निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने छुट्टी पर भेजे जाने के सरकारी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इनकी याचिका मुख्य रूप से 1998 की सुप्रीम कोर्ट की एक व्‍यवस्‍था पर टिकी है, जिसमें कोर्ट ने निर्णय दिया था कि सीबीआई निदेशक का पद कम से कम दो साल के लिए फिक्‍स होना चाहिए. वर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि केंद्र और केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा उन्हें जांच ब्यूरो के मुखिया के अधिकारों से वंचित करने का अचानक लिया गया फैसला गैरकानूनी है और ऐसे हस्तक्षेप से इस प्रमुख जांच संस्था की स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता प्रभावित होती है. याचिका में केंद्रीय जांच ब्यूरो को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से अलग रखने पर जोर भी दिया गया है.