क्या कैराना का किला भेद पाएगी भाजपा?

लखनऊ: कर्नाटक में जीत की दहलीज़ पर पहुंचकर सत्ता से दूर हो गई भाजपा अब उत्तर प्रदेश के कैराना में होने वाले उपचुनाव को लेकर सजग हो गई है। पार्टी एक और शिकस्त नहीं चाहती इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम नेताओं ने यहाँ पूरी ताकत झोंक दी है। कैराना में 28 मई को वोट डाले जाएंगे। इस उपचुनाव में भी मुद्दों से ज्यादा जातिगत आधार पर वोटिंग हो सकती है और भाजपा के लिए यही सबसे बड़ी परेशानी है। यहां 33 फीसदी मुस्लिम, 10 फीसदी जाट और 15 फीसदी दलित मतदाता हैं। भाजपा को रोकने के लिए पिछले उपचुनाव की तरह विपक्षी दल एकसाथ आकर लड़ रहे हैं। राष्ट्रीय लोक दल,समाजवादी पार्टी और  बहुजन समाज पार्टी का मानना है कि उन्हें चुनाव जीतने में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।

जाटों के विरोध बढ़ा सकता है परेशानी
भाजपा को इस बार जाटों के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है। पश्चिमी यूपी में जाटों ने 2014 और 2017 के चुनावों में भाजपा का समर्थन किया था, लेकिन गन्ने का बकाया उसका खेल बिगाड़ सकता है। विपक्षी दलों खासकर राष्ट्रीय लोक दल ने इस मुद्दे को काफी हवा दी है। पार्टी प्रमुख अजित सिंह ये साबित करने में जुट गए हैं कि इसके लिए पूर्ण रूप से भाजपा ज़िम्मेदार है। हालाँकि चुनावी मौसम में मुख्यमंत्री योगी ने वादों की गुगली ज़रूर फेंकी है। उन्होंने कहा है कि यदि चीनी मिलें बकाए का भुगतान नहीं कर पाती हैं तो राज्य सरकार गन्ना किसानों के लिए पैकेज लेकर आएगी। देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव से ऐन पहले किये इस इस वादे का कितना असर होता है।

दंगों का दंश बदला पाएगा तस्वीर?
वैसे भाजपा को आस है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों को देखते हुए मुसलमान अखिलेश यादव और अजित सिंह की पार्टी से दूरी बनाएंगे। क्योंकि दंगों के दौरान राज्य में सपा सरकार थी और अजित सिंह उसी पार्टी का साथ दे रहे हैं। गौरतलब है कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। लिहाजा इस बार वो कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती, पार्टी उम्मीदवार मृगांका सिंह के लिए सहानुभूति भी पैदा कर रही है, जो अपने दिवंगत पिता हुकुम सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में हैं।