मुख्यमंत्री का सूखे को लेकर अध्ययन कमजोर : धनंजय मुंडे

मुंबई : समाचार ऑनलाइन – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नेता और विधान परिषद में विरोधी पक्ष नेता धनंजय मुंडे ने सूखे के मुद्दे पर बुधवार को सरकार को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि इस बार का सूखा 1972 से ज्यादा गंभीर है क्योंकि 1972 में एक वर्ष का सूखा पड़ा था, लेकिन अब किसानों को 4 वर्षों से सूखे का सामना करना पड़ रहा है। कभी सूखा तो कभी नोटबंदी तो कभी बोंडअली (फसलों में लगने वाले कीड़े) की वजह से किसानों को सूखे का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन शुरुआत से ही सरकार सूखे का सामना करने में असफल रही है। मुख्यमंत्री और सरकार का सूखे को लेकर अध्ययन कम है।

धनंजय मुंडे ने सूखे के हालात पर बोलते हुए सूखे पर सरकार की पॉलिसी को गलत बताया। उन्होंने कहा कि यह मेरी सरकार पर टिप्पणी नहीं, सुझाव है। उन्होंने कहा कि केंद्र की 2016 की सूखा नियमावली राज्य के हितों में नहीं है तो सरकार ने स्वीकार क्यों किया? उन्होंने कहा, मैंने खुद जनवरी 2018 में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, मुलाकात की और बताया कि केंद्र की 2016 की सूखा नियमावली राज्य के हितों में नहीं है। अन्य राज्यों ने इसे नकार दिया है। इसके बावजूद इसे लेकर सरकार कुछ नहीं कर रही। मुख्यमंत्री इस मामले में सभागृह में जवाब दें।

कई विशेषज्ञों व मीडिया ने सूखे की गंभीरता सरकार के समझ समय-समय पर रखी, लेकिन सरकार किसी की बात सुनने को तैयार नहीं है। मेरे द्वारा दिए गए पत्र का जवाब तक सरकार ने नहीं दिया। ऐसे में सरकार कितनी असंवेदनशील है समझा जा सकता है। मराठवाड़ा के 50 प्रतिशत से अधिक डैम सूख गए हैं। मौजूदा सूखा नियमावली के कारण आगामी समय में राज्य को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ेगा। राज्य सरकार ने 151 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है, लेकिन केद्र की नियमावली  के मुताबिक केंद्र की टीम आकर इसका निरीक्षण करेगी। इसके बाद इन तहसीलों को सूखे की श्रेणी में रखना है या नहीं इसका निर्णय लिया जाएगा। ऐसे में सरकार सूखे को लेकर जनता को भ्रमित कर रही है।