यमुना से दूरी बर्दाश्त नहीं कर पाएगा ताजमहल

नीरज नैयर

काफी समय पहले मैंने ताजमहल को लेकर एक लेख लिखा था। चूँकि मैं आगरा से हूँ इसलिए  ताजमहल से जुड़ाव बहुत पुराना है। वैसे भी ताज है ही इतना खूबसूरत कि न चाहकर भी उससे प्यार हो जाता है। आज उस लेख को याद करने की ज़रूरत दो कारणों से महसूस हो रही है, एक तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा ताज के बदलते रंग पर जताई गई चिंता और दूसरा आगरा से आए एक पुराने दोस्त द्वारा बयां किया गया यमुना का हाल। सबसे पहले बात यमुना के हाल की करते हैं। किसी ज़माने में यमुना नदी आगरा की शान हुआ करती थी, लेकिन आज वह एक गंदा नाला बनकर रह गई है। यमुना के स्वरूप में इस कदर बदलाव ने ताज के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े किये हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जो चिंता जताई है वो वाजिब है, लेकिन उससे भी ज्यादा ज़रूरी है यमुना और ताजमहल के बीच टूटते कनेक्शन को समझना।

मुमताज महल की मौत के बाद उसकी यादों को जिंदा रखने का ख्याल जब शाहजहां के जहन में आया तब ताजमहल का जन्म हुआ। तत्कालीन इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने फारसी ग्रंथ में लिखा था कि मुमताज महल की मृत्यु के बाद उनके मकबरे के लिए आगरा शहर के बाहर यमुना नदी के किनारे एक उपयुक्त स्थान चुना गया। ताजमहल की नींव जलस्तर तक खोदी गईं और फिर चूने-पत्थरों के गारे से उन्हें भरा गया। यह नींव एक प्रकार के कुओं पर बनाई गईं। कुओं की नींव पर बनी इस इमारत की लंबाई 997 फीट, चौड़ाई 373 फीट और ऊंचाई 285 फीट रखी गई।ताजमहल के अकेले गुंबद का वज़न ही 12000 टन है। ताजमहल को यमुना के किनारे ही क्यों बनाया गया इसके पीछे भी एक महत्वूर्ण तथ्य है।ताजमहल को यमुना के किनारे ऐसे मोड़ पर निर्मित किया गया जहां शुद्ध जल पूरे साल मौजूद रहता था। इसके चारों ओर घना जंगल था।परिणामस्वरूप यहां वातावरण निरन्तर नम रहता था और यह नमी, धूल व वायु के किसी भी अन्य प्रदूषण को सोख लेती थी। अगर हम दूसरे शब्दों में कहें तो ताजमहल नमी की एक चादर सी ओढ़े रहता था जो इसे प्राकृतिक दुष्प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करती थी।

तेज़ी से बदले हालात
वास्तव में ताजमहल का आंतरिक ढांचा ईंटों की चिनाई से बना है। श्वेत संगमरमर तो केवल इसमें बाहर की ओर लगा है।ताज के निर्माण के लिये विशेष प्रकार की ईंटों का इस्तेमाल किया गया था। ताजमहल का ढांचा आज भी उतना ही मजबूत है जितना कि पहले था। वायु प्रदूषण से ताजमहल के आंतरिक ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। प्रदूषण केवल बाहर के संगमरमर को धूमिल कर रहा है। संगमरमर का क्षेय होना भी अच्छे लक्षण नहीं हैं। वर्तमान स्थिति की अपेक्षा यमुना पहले बारह महीने भरी रहती थी।यमुना का पानी एकदम स्वच्छ था और पानी ताजमहल से टकराकर उसका संतुलन बनाए रखता था। इस भरी हुई नदी में ताजमहल का प्रतिबिंब साफ नजर आता था, मानो मुस्कुरा रहा हो। वर्तमान समय में यमुना का जल स्तर पहले की भांति नहीं रहा है, वो ताज से दूर होती जा रही है और पानी बहुत ही प्रदूषित हो चला है। रासायनिक कूड़े से युक्त शहर के गंदे नाले यमुना को और प्रदूषित कर रहे हैं। ताजगंज स्थित शमशान घाट के पास से बहने वाले नाले का गंदा पानी यमुना में जहां मिलता है वह स्थान ताजमहल के बहुत करीब है। उस जगह को देखकर यह आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यमुना को जल प्रदूषण से बचाने के लिए क्या कार्य किये जा रहे हैं।ताजमहल के दशहरा घाट पर यमुना किनारे कूड़े का ढेर लगा रहता है,जिसमें पॉलीथिन प्रचुर मात्रा में है। दिन-ब-दिन यमुना का पानी प्रदूषित होता जा रहा है।

गैसें पहुंचा रहीं नुकसान
यमुना के प्रदूषित पानी से निरन्तर गैसें निकलती रहती हैं, जो ताज को क्षति पहुंचा रही हैं। जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर रामनाथ के एक शोध में यह बात सामने आई थी कि ताजमहल यमुना नदी में धंस रहा है। ताज की मीनारें एक ओर झुक रही हैं। वास्तव में इसे बनाने वाले की कला ही कहा जायेगा तो इतने झुकाव के बाद भी मीनारें अभी तक खड़ी हैं पर ऐसा कब तक चलेगा यह कहना मुश्किल है। वर्तमान समय में ताजमहल जैसी अमूल्य कृति को ज्यादा खतरा यमुना के प्रदूषित जल से है। ताजमहल को वायु प्रदूषण से हो रही क्षति को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बहस हुई मगर इस पर विचार नहीं किया गया कि इमारत धंस रही है। गौरतलब है कि 1893 में यमुना ब्रिज रेलवे स्टेशन ताज के समीप ही बना था। यहां निरन्तर 60 वर्षों से इंजन धुआं भी छोड़ रहे थे। परन्तु जब 1940 के सर्वेक्षण की रिपोर्ट आई तो नतीजों में कहीं भी धुएं से ताज को होने वाली क्षति का उल्लेख नहीं था। ऐसा इसलिए कि यमुना का शुद्ध जल और आसपास की हरियाली वास्तव में ऐसी कोई क्षति होने ही नहीं देते थे। नदी का स्वच्छ जल निरन्तर इसकी रक्षा करता था।

जल प्रदूषण ज्यादा घातक
प्रदूषण के चलते आगरे से बहुत सी फैक्ट्रियों को हटा दिया गया मगर इस अहम समस्या पर किसी का ध्यान नहीं गया। हां यह बात एकदम सही है कि 1940 से अब तक के सफर में वायु प्रदूषण के अस्तित्व में भी इजाफा हुआ है। इससे ताज के संगमरमर को क्षति हुई है और आज ताज का श्वेत रंग थोड़ा काला सा हो गया है, जो निश्चित ही इसकी खूबसूरती के लिये घातक है। इसी के चलते कई बार मथुरा रिफाइनरी पर भी सवाल उठाए गए। आगरे से व्यावसायिक इकाइयों को तो हटा दिया गया मगर प्रदूषण की समस्या जस की तस है। भारत की तरफ पर्यटकों को आकर्षित करने में ताजमहल का अपना ही एक अनोखा योगदान है। ताज की इस छवि को हमेशा के लिए बनाए रखने के लिये सही दिशा में शीघ्र ही कार्य करने की जरूरत है। यमुना है तो ताज है यमुना नहीं तो ताज नहीं। इसलिए नदी के प्रदूषित पानी को स्वच्छ करने के प्रयास करने चाहिए। वर्तमान समय में यमुना का पानी कितना शुद्ध है यह बताने की शायद जरूरत नहीं है। कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि नदी का जलस्तर ज्यादा नीचे न जाए। यह समस्या कोई नई नहीं है, कई बार सामने आ चुकी है मगर अफसोस की बात है कि अब तक इसके निपटारे के सार्थक कदम नहीं उठाए गए हैं। ताजमहल को यदि वास्तव में बचाना है तो यमुना से इसके रिश्ते को समझना होगा। जिस तरह से यमुना ताज से दूर जा रही है, वो उसके भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।