लोनावला, 20 दिसम्बर (आईएएनएस)| एलआईएफएफटी (लिटरेचर, इल्यूजन, फिल्म, फ्रेम, टेलीविजन एंड थिएटर) इंडिया फिल्मोत्सव 2019 पर अपनी फिल्म ‘डॉटर्स ऑफ विंटर’ के प्रदर्शन के लिए ईरानी फिल्म लेखिका सोलमज एत्माद अपने पति और मशहूर फिल्मकार बेहजाद खोदावेसी संग भारत आई हुई हैं।
उनका कहना है कि हालांकि फिल्म को वैश्विक दर्शकों द्वारा सराहा गया है, लेकिन ईरान के सेंसरबोर्ड में इसे पास नहीं किया गया। एक कहानीकार होने के नाते उनका मानना है कि फिल्मों की पहुंच सेंसरशिप के बिना लोगों तक होनी चाहिए।
एत्माद के मुताबिक यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है। इस फिल्म में जैसा दिखाया गया है, ठीक उसी तरह की परिस्थिति का सामना उनकी एक दोस्त ने अपनी वास्तविक जिंदगी में किया है और एक दिन वह सबकुछ छोड़ गायब हो गई।
यह पूछे जाने पर कि ईरान में सेंसर को उनकी फिल्म के बारे में किन चीजों को लेकर आपत्ति थी? इसके जवाब में एत्माद ने आईएएनएस को बताया, “हमें बताया गया कि सामाजिक और सांस्कृतिक दवाब के अन्तर्गत एक लड़की की परेशानी को दिखाने में समस्या है और गरीबी पर दोषारोपण नहीं किया जा सकता है। हमें यह भी बताया गया कि एक महिला को धूम्रपान करते और घर में वाइन बनाते हुए दिखाने में कोई वास्तविकता नहीं है। हालांकि यह सच नहीं है।”
एत्माद ने आगे कहा, “जहां दुनियाभर के दर्शक हमारे फिल्म की सराहना कर रहे हैं, वहां यह बेहद दुखद है कि हमारे देश की लड़कियां जिन्हें मैं अपनी लिखी गई कहानी के किरदारों के माध्यम से प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूं, वे इस फिल्म को नहीं देख सकती हैं। एक कहानीकार होने के नाते मैं सेंसरशिप के नियमों पर खरा उतरने के लिए किसी भी दृश्य को नहीं हटाऊंगी। फिल्म और साहित्य में सेंसरशिप और वह भी तब जब वे सच्ची घटनाओं पर आधारित हो, तो यह अपने देश की छवि को सुधारकर दिखाने के जैसा है जो वास्तविकता से कहीं दूर है। मैं समझौता करूं तो क्यों करूं?”
जब उन्होंने अपने मित्र को ढूंढ़ने का प्रयास किया और महसूस किया कि वह कहीं गायब हो गई है, तो एत्माद पूरी तरह से टूट गई थीं।
दूसरी बार भारत आईं एत्माद ने साझा किया, “वह एक बहुत ही प्यारी लड़की थी जिसके अपने कुछ सपने थे, लेकिन जिंदगी में वह जो कुछ भी हासिल करना चाहती थी और इसके साथ ही अपने परिवार के लिए उसे ढेर सारे पैसे कमाने की जरूरत थी। उसके पिता बूढ़े थे और उनकी अपनी कोई कमाई भी नहीं थी और घर में उसके कई सारे भाई-बहन थे जिन्हें खिलाने-पिलाने की जिम्मेदारी भी थी। ईरान जैसे एक देश में जहां समाज का एक तबका गरीबी, युद्ध के बाद के प्रभाव और नौकरी के लगभग शून्य अवसर, सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव जैसी तमाम परेशानियों से जूझ रहा है, ये परिस्थितियां लड़कियों को सपने देखने से रोकती हैं। अपनी फिल्म में मैंने अपने दोस्त की कहानी और अपनी भावनाओं को डाला है। मेरी फिल्म इन महिलाओं को समर्पित है।”
एलआईएफएफटी इंडिया फिल्मोत्सव के तीसरा संस्करण का आयोजन लोनावाला के फरियास रिजॉर्ट में 12 से 16 दिसंबर के बीच किया गया। इस फिल्मोत्सव में विभिन्न श्रेणियों में 40 देशों की 250 से अधिक फिल्मों की स्क्रीनिंग की गई।