आखिर एससी-एसटी के नाम पर क्यों हो रहा है बवाल?

नई दिल्ली: अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) कानून के नाम पर सोमवार को भारत बंद बुलाया गया, बिहार में कई रेलगाड़ियों को रोका गया। यह पूरा बवाल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ हो रहा है, जिसमें उसने इस कानून के तहत तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगाई थी। दलित संगठनों ने इस फैसले को गलत ठहराया है, वहीं सरकार को भी कुछ ऐसा लगता है। इसलिए वह पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाली है। आइये समझते हैं कि आखिर पूरा मामला है क्या?

केस का आधार
एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता का कहना था कि महाजन ने उन दो जूनियर अधिकारियों के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई पर रोक लगा दी, जिन्होंने जातिसूचक टिप्पणी की थी। दरअसल, गैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने शिकायतकर्ता की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके खिलाफ टिप्पणी की थी। जब पुलिस ने सम्बंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत मांगी, तो इजाजत नहीं दी गई। इस पर उनके खिलाफ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया।

बचाव पक्ष की दलील
बचाव पक्ष का कहना है कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा। कई लोग दबी जुबान में इस पक्ष को सही करार दे रहे हैं।

अदालत से गुहार
काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था, लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इससे इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने उन पर एफआईआर हटाने का आदेश देते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दिया। साथ ही ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी।

और क्या कहा अदालत ने
शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे कार्रवाई करनी चाहिए। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी।

दलित संगठनों को आपत्ति क्यों
दलित संगठन इस फैसले के खिलाफ है, उनका कहना है कि इससे 1989 का अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस कानून की धारा 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा। इसके अलावा सरकारी अफसरों के खिलाफ केस में अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी को लेकर भी दलित संगठनों का कहना है कि उसमें भी भेदभाव किया जा सकता है।