आर्थिक सर्वेक्षण में पक्षपाती सोवरेन क्रेडिट रेटिंग का विरोध किया गया

नई दिल्ली, 29 जनवरी (आईएएनएस)। सोवरेन क्रेडिट रेटिंग पर आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि यह रेटिंग भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों को नहीं दर्शाती हैं।

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यम द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज में कहा गया है कि भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है।

दस्तावेज में सोवरेन क्रेडिट रेटिंग को पक्षपाती करार दिया है। कहा गया है कि इन क्रेडिट रेटिंगों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशों के प्रवाह को भी नुकसान होता है।

सर्वेक्षण में सवाल किया गया कि क्या भारत की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग अपने मूल सिद्धांतों को भी दर्शाती है और कम से कम दो दशकों की अवधि में इसकी कम रेटिंग में परिलक्षित भारत के मूल सिद्धांतों के एक प्रणालीगत मूल्यांकन का प्रमाण मिला है।

आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि भारत की वित्तीय नीति को पक्षपातपूर्ण रेटिंग के आधार पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे विकास पर केंद्रित होना चाहिए, जो गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की भावना- मन बिना किसी भय के- को दर्शाती हो।

इसमें कहा गया है कि भारत की राजकोषीय नीति को पक्षपाती और व्यक्तिपरक संप्रभु क्रेडिट रेटिंग द्वारा नियंत्रित किए जाने के बजाय विकास के विचारों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए।

इसलिए सभी विकासशील देशों से आह्वान किया गया है कि वे सोवरेन क्रेडिट रेटिंग पद्धति से संबंधित इस पक्षपात को समाप्त करने के लिए एक साथ आएं और इसे अधिक पारदर्शी बनाएं। भारत ने जी-20 में क्रेडिट रेटिंग के मामले को उठाया है।

सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के इतिहास में ऐसा अब तक नहीं हुआ है कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को निवेश के लिए सबसे निम्न श्रेणी (बीबीबी/बीएए3) दी गई हो। चीन और भारत इसके अपवाद हैं। अर्थव्यवस्था के आकार तथा कर्ज वापस करने की क्षमता के आधार पर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था एएए रेटिंग दी गई थी।

भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है। विभिन्न कारकों की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के प्रभाव की तुलना में देश को कम रेटिंग दी गई है। इन कारकों में शामिल हैं-जीडीपी विकास दर, महंगाई दर, सरकारी कर्ज (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), चालू खाता धनराशि (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), लघु अवधि के विदेशी कर्ज (विदेशी मुद्रा भंडार के प्रतिशित के रूप में), विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्ता अनुपात, राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशकों की सुरक्षा, कारोबार में सुगमता और सोवरेन जवाबदेही को पूरा करने में विफलता।

यह स्थिति न सिर्फ वर्तमान के लिए बल्कि पिछले दो दशकों के लिए भी सत्य है।

–आईएएनएस

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