मिश्रा को बीते वर्ष 26 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था और आरोप है कि उन्होंने सड़क निर्माण के लिए सरकारी खजाने से एक करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया, जबकि वास्तव में कोई काम नहीं हुआ था।
जमानत अर्जी को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति ओम प्रकाश ने कहा, यह रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि सड़क निर्माण के संबंध में सरकारी खजाने (सार्वजनिक धन) से आवेदक द्वारा भुगतान किया गया था, जबकि वास्तव में कोई काम नहीं किया गया था।
अदालत ने आगे कहा कि मामले के पूरे तथ्यों और अपराध के सबूत, अभियुक्त की जटिलता और मामले की योग्यता को ध्यान में रखते हुए, अदालत का विचार है कि आवेदक जमानत के लिए योग्य नहीं है।
इससे पहले, आवेदक के वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि आवेदक ने अपराध नहीं किया है।
उन्होंने आगे कहा कि इस मामले में एफआईआर वर्ष 2012 में दर्ज की गई थी और आवेदक का नाम एफआईआर में नहीं था। लगभग आठ साल के अंतराल के बाद, उन्हें 26 अक्टूबर, 2020 को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था।
उन्होंने कहा कि इंजीनियरों द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के आधार पर सड़क के निर्माण के लिए भुगतान किया गया था। तीसरे पक्ष का निरीक्षण भी किया गया। इसलिए, इस मामले में आवेदक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है।
ट्रायल कोर्ट ने अपर्याप्त सबूतों के आधार पर आवेदक की जमानत याचिका खारिज कर दी है।
उनके वकील ने कहा कि आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। वह 26 अक्टूबर, 2020 से जेल में बंद है और अगर वह जमानत पर रिहा हो जाता है, तो वह जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा और मुकदमे में सहयोग करेगा।
दूसरी ओर, राज्य सरकार के लिए पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता कृष्णा पहल ने जमानत के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा कि वास्तव में इस मामले में सड़क के निर्माण के संबंध में धन जारी की गई थी, लेकिन निर्माण नहीं किया गया था।
यह भी प्रस्तुत किया जाता है कि यद्यपि आवेदक का नाम एफआईआर में नहीं है, फिर भी जांच के दौरान उसकी संलिप्तता सामने आई।
–आईएएनएस
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