कैश की किल्लत के पीछे चुनाव तो नहीं?

देश के कई शहरों में चल रही कैश की किल्लत ने कई सवालों को जन्म दिया है। सबसे पहला सवाल तो यही है कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि नकदी कम होती गई और रिज़र्व बैंक को पता तक नहीं चला। दूसरा सवाल यह है कि आखिर एटीएम से 2000 के नोट निकलने बंद क्यों हो गए हैं? तीसरा सवाल यह है कि क्या सरकार 2000 के नोटों को बंद करने जा रही है? यदि ऐसा है तो फिर इन नोटों को फिट करने के लिए एटीएम मशीनों में बदलाव पर खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी? इन सब सवालों के बीच यह भी माना जा रहा है कि कैश की किल्लत किसी समस्या के चलते नहीं हुई, बल्कि कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर कैश होर्डिंग से उत्पन्न हुई है। यानी राजनीतिक दलों ने चुनाव जीतने के लिए आजमाए जाने वाले हथकंडों के लिए कैश जमा करके रख लिया है।

नहीं बदली संस्कृति

अगले कुछ महीनों में पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके अलावा 2019 में देश का आम चुनाव है। ऐसे में प्रचार और जनता का रुख अपने पक्ष में मोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर नकदी का इस्तेमाल किया जाता है। जमाना भले ही बदल गया हो, लेकिन नोट के बदले वोट की संस्कृति पूरी तरह नहीं बदल पाई है। चोरी-छिपे यह खेल अब भी खेला जाता है, सीधे कैश नहीं तो अप्रत्यक्ष तौर पर किसी न किसी तरीके से मतदाताओं को खुश करने की कोशिश हर सियासी दल करता है। लिहाजा माना जा रहा है कि नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर कैश जमा करके रखा गया है।

ये है वजह

गौरतलब है कि नोटबंदी के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट काफी सख्त हो गया है। चुनावी चंदे से लेकर चुनाव में होने वाले खर्च पर भी विभाग नजर रखता है। लिहाजा चुनाव के समय इतने बड़े पैमाने पर कैश का इंतजाम करना आसान नहीं होगा। इसलिए एक बार में पैसों का इंतजाम करने के बजाए पहले से थोड़ा-थोड़ा जमा करके इसकी तैयारी चल रही है। थोड़ी-थोड़ी जमाखोरी से जांच एजेंसियों को ऐसे लोगों को ट्रैक करना आसान नहीं होगा।