क्या है महाभियोग और कैसे पारित होता है?

मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ संसद में महाभियोग चलाए जाने के प्रस्ताव की तैयारी पूरी कर ली गई है। मालूम ही कि सीजेआई पर सुप्रीम कोर्ट के ही चार वरिष्ठ जजों ने उनकी कार्यप्रणाली पर गंभीर आरोप लगाए थे। जिसके बाद से ही कांग्रेस सहित कई राजनीतिक पार्टियां मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाए जाने पर आम सहमति बना रही थीं। ख़बरों के मुताबिक, माकपा सहित कुछ क्षेत्रीय दलों द्वारा तैयार प्रस्ताव से संबंधित मसौदे पर कांग्रेस,वामपंथी पार्टियों, टीएमसी और एनसीपी के सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। अब सीजेआई के खिलाफ संसद में महाभियोग चलाया जाएगा। ऐसे में यह जानना अहम है कि चीफ जस्टिस को कैसे हटाया जा सकता है, महाभियोग होता क्या है? और यह कैसे पारित किया जाता है।

कैसे हटाया जा सकता है?

सबसे पहले जानते हैं कि आखिर चीफ जस्टिस को अपने पद से कैसे हटाया जा सकते है। संविधान के जानकारों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पद से हटाने के लिए महाभियोग लाना ही एकमात्र विकल्प होता है और सदन के दोनों सदनों से प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही उन्हें हटाया जा सकता है।

महाभियोग क्या है…

महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है, जो संसद में कुछ विशेष पदों पर आसीन व्यक्तियों के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है। इन पदों में राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश आदि हैं।

कौन हटा सकता है?

मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के किसी भी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास होता है, जो संसद की अनुशंसा पर अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए उन्हें पद से हटा सकते हैं। भारतीय संविधान में न्यायधीशों पर महाभियोग का चलाए जाने की जानकारी अनुच्छेद 124(4) में मिलती है।

क्या है प्रक्रिया

-मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। अभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा में 100 और राज्य सभा के 50 सांसदों की रजामंदी जरूरी होती है। और अगर सदन में राजनीतिक पार्टियों में अभियोग के लिए पर्याप्त समर्थन है तो लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में उपराष्ट्रपति प्रस्ताव को स्वीकार कर सकते हैं।

-राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर पर निर्भर करता है कि वह प्रस्ताव को रद्द या स्वीकार करें। अगर राज्यसभा चेयरमैन या लोकसभा स्पीकर प्रस्ताव मंजूर कर लेते हैं तो आरोप की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जाता है। इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होता है।

-अगर कमेटी जज को दोषी पाती है तो जिस सदन में प्रस्ताव दिया गया है, वहां इस रिपोर्ट को पेश किया जाता है। यह रिपोर्ट दूसरे सदन को भी भेजी जाती है। जांच रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से समर्थन मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।

क्या है संभावना?

कांग्रेस के पास 51, डीएमके के पास 4, आईयूएमएल के पास 1, आरजेडी के 5, एनसीपी के 4, सपा के 13, टीएमसी के 13, बसपा के 4 और लेफ्ट के 6 सदस्य हैं। इस लिहाज से कांग्रेस राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने में कामयाबी हासिल कर लेगी। वहीं, अगर लोकसभा में भी प्रस्ताव लाया जाए तो विपक्ष ऐसा करने में सक्षम रहेगा, लेकिन इसे पारित कराने की स्थिति में विपक्ष नहीं है। ऐसे में महाभियोग प्रस्ताव पारित होने की संभावनाएं बिल्कुल नहीं है।