तबलीगी जमात की सुनवाई के बीच सीजेआई ने 26 जनवरी को इंटरनेट बंद का हवाला दिया

नई दिल्ली, 28 जनवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने निजामुद्दीन मरकज की घटना के दौरान फर्जी और प्रेरित खबरों के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए हिंसा को रोकने के लिए एक प्रतिबंधात्मक उपाय के रूप में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने का हवाला दिया। 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर अधिकारियों ने इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी थी।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने जोर देकर कहा कि कई बार सरकार को समाचारों को नियंत्रित करना पड़ता है और इसके लिए उन्होंने गणतंत्र दिवस पर सड़कों पर हिंसा के बाद राजधानी के विभिन्न हिस्सों में इंटरनेट बंद करने का हवाला दिया।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सरकार ने दिल्ली में किसानों के यहां आने (विजिट) की वजह से मोबाइल पर इंटरनेट बंद कर दिया है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, मैं गैर विवादास्पद शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं.. आपने इंटरनेट मोबाइल बंद कर दिया है.. ये ऐसी समस्याएं हैं जो कहीं भी पैदा हो सकती हैं..।

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विजिट शब्द पर आपत्ति जताई।

जिस पर, मुख्य न्यायाधीश ने जवाब दिया कि वह जानबूझकर एक गैर-विवादास्पद शब्द का उपयोग कर रहे थे।

मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि निष्पक्ष और सच्ची रिपोर्टिग आमतौर पर कोई समस्या नहीं है, लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब इसका उपयोग दूसरों को उत्तेजित करने और किसी विशेष समुदाय को लक्षित करने के लिए किया जाता है।

मुख्य न्यायाधीश ने जोर दिया कि सूचना के प्रवाह को नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार उन कार्यक्रमों को नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं कर रही है जो एक समुदाय को उकसाने के लिए दिखाए जाते हैं।

अदालत ने मामले को तीन सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए मुकर्रर कर दिया।

जमीयत और अन्य लोगों ने विभिन्न मीडिया हाउसों द्वारा खराब रिपोर्टिग का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, इसी के सिलसिले में सुनवाई हो रही थी।

–आईएएनएस

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