तमिलनाडु की राजनीति में बहुत सीमित है राष्ट्रीय दलों की भूमिका

चेन्नई, 31 मार्च (आईएएनएस)। कांग्रेस नेता एम. भक्तवल्सलम ने मार्च 6,1967 में जब मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था, तब तमिलनाडु के बहुत कम लोगों को ही अंदाजा रहा होगा कि वह राज्य के ऐसे आखिरी मुख्यमंत्री होंगे, जिनका संबंध किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल से होगा।

इसके बाद तमिलनाडु में द्रविड़ दलों का आगमन हुआ और फिर द्रमुक नेता सी.एन. अन्नादुराई यहां के मुख्यमंत्री बने और उसके बाद इन्हीं पार्टियों ने राज्य को कई मुख्यमंत्री दिए। तमिल राष्ट्रवाद और हिंदी विरोधी भावना के चलते यहां द्रविड़ दल अत्यधिक लोकप्रिय हो गए और आज तक वे ही इस राज्य पर शासन कर रहे हैं।

अब 2021 के विधानसभा चुनावों को देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही 2 बार राज्य का दौरा कर चुके हैं। इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर निर्मला सीतारमण तक भाजपा के कई वरिष्ठ नेता यहां आ चुके हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी राज्य में कई दौरे कर चुके हैं। लेकिन दोनों पार्टियों की कोशिशों के बीच सवाल यह है कि इन दोनों की राज्य में स्थिति क्या है। हालांकि दोनों दलों ने प्रमुख द्रविड़ दलों – एआईएडीएमके (भाजपा ने) और डीएमके (कांग्रेस ने) के साथ गठबंधन किया है लेकिन इन राष्ट्रीय दलों को बहुत कम सीटें दी गईं हैं।

एआईएडीएमके साथ आई भाजपा 234 सदस्यीय विधानसभा के लिए महज 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं डीएमके साथ आई कांग्रेस को 25 सीटें आवंटित हुईं हैं।

तमिलनाडु की चुनावी राजनीति में भगवा पार्टी ने कभी भी ज्यादा ताकत नहीं दिखाई। यहां तक कि अन्नाद्रमुक ने भी यह स्वीकार किया कि कन्याकुमारी लोकसभा सीट के उम्मीदवार का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री के पद पर होने के बाद भी भाजपा यह सीट नहीं बचा पाई थी।

उधर द्रमुक ने कांग्रेस नेतृत्व को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि पार्टी अपने विधायकों को सुरक्षित रखना चाहती है इसलिए उसे कम सीटें दी गईं हैं। डीएमके नेता और थुथुकुडी निर्वाचन क्षेत्र से सांसद कनिमोझी ने मीडिया से कहा है कि डीएमके चाहती है कि उसके सभी विधायक एक-दूसरे से चिपके रहें, ताकि चुनाव के बाद संकटपूर्ण स्थितियां पैदा होने पर वे घेरे से बाहर न निकल सकें।

वहीं वाम दलों, सीपीएम और सीपीआई के राष्ट्रीय दल होने के बाद भी डीएमके ने इन सभी को 6-6 सीटें ही दी हैं। वैसे अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन ने पिछले लोकसभा चुनावों में सीपीआई और सीपीएम पर डीएमके से क्रमश: 15 करोड़ रुपये और 10 करोड़ रुपये लेने का आरोप लगाया था। इस पर तमिलनाडु के सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य जी. रामकृष्ण ने जबाव में कहा था कि ये पैसा द्रमुक कैडर पर खर्च किया गया, जो वामपंथी उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे थे।

कुल मिलाकर ऐसे हालातों के बीच दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय दलों के पास उन्हें मिली गिनी-चुनी सीटों को स्वीकार करने और जमीनी स्तर पर चुपचाप काम करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। जाहिर है राष्ट्रीय दलों का इस दक्षिणी राज्य में तत्काल कोई भविष्य न होने के कारण तमिलनाडु की राजनीति इस बार भी द्रविड़ पार्टियों के आसपास ही केंद्रित रहने की पूरी संभावना है।

–आईएएनएस

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