दुश्मन न करे, ख़बरी ने वो काम किया है…

पुलिस वालों के साथ भी होती है धोखाधड़ी, फंसानेवाले होते हैं उनके ही ख़बरी
गुणवंती परस्ते

पुणे: पुणे समाचार
डिटेक्शन के नाम पर कई बार पुलिस वालों को भी मुँह की खानी पड़ती है। यह ऑन रिकॉर्ड भले ही सामने नहीं आता हो लेकिन पुलिस वालों को उनके ही खबरी गोपनीय जानकारी देने के नाम पर पैसे ऐंठकर गायब हो जाते हैं। डिटेक्शन का पुलिस वालों पर काफी प्रेशर होता है, इसलिए न चाहते हुए भी पुलिस अधिकारी- कर्मचारी को गोपनीय जानकारी पाने के लिए खबरियों को पैसा देना पड़ता है। ऐसा बहुत बार हुआ है कि डिटेक्शन के नाम पर फर्जी जानकारी देकर खबरी पैसे लेकर चंपत हो गया और बाद में पुलिस वालों को यह बोलकर झाँसा दे दिया कि गोपनीय जानकारी लीक हो जाने से आरोपी ही फरार हो गया, तो मैं क्या करूँ। ऐसी गोलमोल बात करके खबरी बहुत बार पुलिस वालों को ही लूट लेते हैं, लेकिन समाज में या लोगों के बीच फजियत न हो इसलिए पुलिस अधिकारियों –कर्मचारियों को इस मामले में चुप्पी लगा लेनी पड़ती है।

खबरी द्वारा लूटने का नया ट्रैंड
पुणे पुलिस विभाग में एक अनजाने नंबर से एक शख्स पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों को गोपनीय खबर देने के नाम पर पैसे अकाउंट में ट्रांसफर करने की बात करता है, जब पुलिस अधिकारी उस शख्स से कहते हैं कि सामने आकर पैसे ले जाओ तो शख्स अपना फोन बंद कर देता है। शख्स द्वारा पुलिस अधिकारियों झूठी जानकारी दी जाती है कि पुणे में चोरी की चार फोर व्हीलर,12 टूव्हीलर और 3 रिवॉल्वर मिले हैं, अकाउंट में 20 हजार रुपए डालने की बात कहकर पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश की जाती है। बहुत से अधिकारियों के पास इसी तरह किसी अनजान शख्स द्वारा कॉल पहुँचा है, लेकिन पुलिस अधिकारी ठग के झाँसे में नहीं आते। इससे पहले भी ठाणे में एक खबरी द्वारा पुलिस विभाग के अधिकारियों को इस तरह से फंसाने की घटना घट चुकी है, सो उसी तर्ज पर अब पुणे में पुलिस को फंसाने की कोशिश की जा रही है।

पुलिस कई बार अपने गोपनीय खबरी द्वारा डिटेक्शन करते हैं, खबरियों को पुलिस द्वारा मोटी रकम मिलती है ताकि वे पुलिस को आरोपियों और चोरी के माल तक पहुंचा सकें। हालाँकि पुलिस के कुछ खबरी काफी ईमानदार होते हैं, जो पुलिस को डिटेक्शन के लिए सच्ची गोपनीय जानकारी देते हैं। पुलिस को बहुत बार डिटेक्शन का दबाव होता है, जिसका फायदा उठाकर खबरी पुलिस को झूठी जानकारी देकर पैसे ले जाते हैं और महीनों गायब रहते हैं। खबरी से खबर मिलती रहे इसलिए पुलिस बेझिझक और मुंहमांगी रकम खबरी को देती है। डिटेक्शन की हड़बड़ाहट में पुलिस कभी कभी इस बात की पुष्टि तक नहीं नहीं कर पाती कि जानकारी कितनी सही है।

अपनी जेब से देना होता पैसा
खबरी की मनमानी माँग और इच्छा पुलिस पूरी करती है, पर यह माँग कई बार पुलिस वालों की जेब पर भारी पड़ जाती है क्योंकि उन्हें अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। पुलिस विभाग में इन सभी खर्चों के लिए स्पेशल फंड होता है, पर समय पर फंड नहीं मिलने की वजह से बहुत बार पुलिस वाले अपनी ही जेब से पैसा खर्च कर खबरी को पैसा देते हैं। अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर पुलिस वालों ने इस बात को कबूल किया की खबरी को पैसा देने के बाद उनका काम नहीं हुआ और खबरी महीनों महीनों तक गायब हो जाता है। खबरी हजारों से लाखों रुपए तक का चूना पुलिस वालों को लगा चुके हैं। खबरी के पीछे पुलिस विभाग के पैसे डूब जाते हैं, पर विभाग की बदनामी न हो इसलिए पुलिस इस मामले में चुप्पी साधने में ही गनीमत समझती है।