मुख्यमंत्री का बेटा जिसने मज़बूरी में सियासत को चुना

बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इस बार एक ऐसे शख्स की किस्मत का भी फैसला होगा, जिसने कभी राजनीति में आने के बारे में सोचा ही नहीं था। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बेटे यतींद्र हैं। यतींद्र ने हमेशा खुद को पिता के रसूख और राजनीति से दूर रखा। पांच साल पहले जब सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब भी डॉ. यतींद्र उनके साथ जाने के बजाए अपने क्लीनिक में मरीजों को देखने में व्यस्त थे। यतींद्र ने पहले ही साफ़ कर दिया था कि उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह अपने काम से खुश हैं। मगर 2016 में हुए एक हादसे ने उनकी जिंदगी को पलटकर रख दिया।

…और पलट गई जिंदगी
बड़े भाई राकेश की 2016 में बेल्जियम में मौत होने के बाद यतींद्र की अपने पिता से नजदीकियां बढ़ी। इससे पहले तक कम ही लोग जानते थे कि सिद्धारमैया का राकेश के अलावा कोई दूसरा बीटा भी है। यहाँ तक कि 2017 से पहले यतींद्र अपने पिता के दफ्तर भी कभी नहीं गए। उन्होंने खुद को राजनीति और राजनेताओं से पूरी तरह दूर रखा था। बताया जाता है कि राकेश सिद्धारमैया के चहेते थे और सिद्धारमैया ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने का भी फैसला कर लिया था।
राकेश की अचानक मौत के बाद यतींद्र को अपनी आम जिन्दगी को हमेशा के लिए अलविदा कहना पड़ा। हालाँकि सिद्धारमैया कहते हैं कि उन्होंने यतींद्र पर राजनीति में आने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया।

 किसी ने नहीं पहचाना
सिद्धारमैया के करीबी बताते हैं कि सिद्धारमैया की चाहत थी कि यतींद्र उनकी विधानसभा सीट वरूना को संभालें, जिसे पहले राकेश संभालते थे। जब यतींद्र पहली बार यहाँ आए तो किसी ने उन्हें नहीं पहचाना। लेकिन बाद में धीरे-धीरे यतींद्र ने खुद को राजनीति में ढाल लिया। सिद्धारमैया को विश्वास है कि यतींद्र को कोई सिर्फ उनका बेटा समझकर वोट नहीं करेगा। बल्कि लोग उनकी अच्छाइयों पर उन्हें चुनकर लाएंगे।

 जीत की संभावना
राजनीति के जानकार मानते हैं कि विनम्र और दयालु होना यतींद्र के लिए फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा जिस तरह से वह मुख्यमंत्री के बेटे होने के बावजूद आम जिंदगी जीते रहे उससे भी लोग प्रभावित हैं। इसलिए पूरी संभावना है कि लोग उन्हें अपने विधायक के रूप में चुनें।