हरि बोल और जय जगन्नाथ के मंत्रों के साथ तीन देवता – भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा – रत्न सिंहासन से नीचे आए और वार्षिक प्रवास के लिए रथों पर चढ़ गए।
पहंडी बीजे की शुरूआत भगवान बलभद्र के साथ की गई, उनके बाद देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ ने की। एक औपचारिक जुलूस में सेवक देवताओं की मूर्तियों को रत्न सिंहासन से उनके रथों – तलध्वज, दर्पदलन और नंदीघोसा तक ले गए। पहंडी बीजे की रस्म तय समय से पहले पूरी हो गई।
गजपति महाराजा दिब्यसिंह ने छेरा पहाड़ का प्रदर्शन किया, वह समारोह जिसमें वे एक के बाद एक सभी रथों को साफ करते हैं। रथ खींचने की शुरूआत भी भगवान बलभद्र के तलध्वज से हुई।
कोविड प्रतिबंधों के मद्देनजर, भक्तों की भागीदारी के बिना वार्षिक उत्सव आयोजित किया गया था।
अनुष्ठान और जुलूस के लाइव प्रसारण और स्ट्रीमिंग के दौरान ओडिशा और दुनिया भर में लाखों भक्तों ने अपने टीवी सेट, मोबाइल फोन और कंप्यूटर पर इस समारोह को देखा।
रथ यात्रा को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं। ग्रैंड रोड के पूरे हिस्से में धारा 144 लागू कर दी गई और तीर्थ नगरी में कर्फ्यू जैसी स्थिति पैदा हो गई। बड़ा डंडा और पुरी की ओर जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया गया है।
–आईएएनएस
एसएस/आरजेएस