समंदर से संवाद करती कविता लिख मोदी ने दिलाई अटल की याद

 नई दिल्ली, 13 अक्टूबर, (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाबलीपुरम में समंदर की लहरों से संवाद करती हुई एक कविता लिखकर कवि हृदय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिला दी।

  भाजपा के दिग्गज नेता अटल की पहचान एक राजनेता के साथ संवेदनशील कवि की भी रही है, वह अपने जज्बातों को समय-समय पर कविताओं के जरिए बयां किया करते थे।

ठीक उसी नक्शेकदम पर चलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर कविता के जरिए अपनी भावनाओं को काव्यात्मक रूप में व्यक्त किया। मौका, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ऐतिहासिक महाबलीपुरम में शिखर वार्ता का था। इस सिलसिले में यहां पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी जब बीच पर चहलकदमी कर रहे थे तो वह समंदर के सौंदर्य और उसमें छिपे जीवन-दर्शन को खोजकर कविता रचने से खुद को रोक नहीं सके।

रविवार को ट्विटर पर शेयर करते ही उनकी कविता सोशल मीडिया पर वायरल हो गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई पहली बार कविता नहीं लिखी है, उनका कविताओं और साहित्य से पुराना नाता रहा है। देश, समाज, पर्यावरण, प्रेम, संघ नेताओं आदि पर लिखी अब तक उनकी 11 से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकीं हैं। इनमें गुजराती में लिखा काव्य संग्रह- ‘आंख अ धन्य छे’ प्रमुख है, इसमें मोदी की 67 कविताएं हैं। मध्य प्रदेश भाजपा की पत्रिका ‘चरैवेति’ में उनकी गुजराती में लिखी कविताओं का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है।

वर्ष 2015 में ‘साक्षी भाव’ नाम से भी कविता संग्रह छप चुकी है, जिसमें मां से संवाद करती हुई उनकी कविताएं हैं। ‘सामाजिक समरसता’, ‘ज्योतिपुंज’ नाम से भी उनकी किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। बच्चों को परीक्षा के तनाव से उबारने के लिए उनकी साल 2018 में प्रकाशित पुस्तक ‘एग्जाम वॉरियर्स’ सुर्खियों में रही थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को करीब दोपहर 2.30 बजे ने एक ट्वीट कर लिखा, “कल महाबलीपुरम में सवेरे तट पर टहलते-टहलते सागर से संवाद करने में खो गया। ये संवाद मेरा भाव-विश्व है। इस संवाद भाव को शब्दबद्ध करके आपसे साझा कर रहा हूं।” फिर उन्होंने यह कविता शेयर की :

हे..सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

तू धीर है, गंभीर है,

जग को जीवन देता, नीला है नीर तेरा!

ये अथाह विस्तार, ये विशालता

तेरा ये रूप निराला।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

सतह पर चलता ये कोलाहल, ये उत्पाद,

कभी ऊपर तो कभी नीचे,

गरजती लहरों का प्रताप,

ये तुम्हारा दर्द है, आक्रोश है

या फिर संताप?

तुम न होते विचलित

न आशंकित, न भयभीत

क्योंकि तुममें है गरहाई !

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

शक्ति का अपार भंडार समेटे,

असीमित ऊर्जा स्वयं में लपेटे

फिर भी अपनी मयार्दाओं को बांधे,

तुम कभी न अपनी सीमाएं लांघे!

हर पल बड़प्पन का बोध दिलाते।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

तू शिक्षादाता, तू दीक्षादाता

तेरी लहरों में जीवन का

संदेश समाता।

न वाह की चाह

न पनाह की आस

बेपरवाह सा ये प्रवास।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

चलते-चलाते जीवन संवारती,

लहरों की दौड़ तेरी।

न रुकती, न थकती,

चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति का मंत्र सुनाती।

निरंतर.सर्वत्र!

ये यात्रा अनवरत,

ये संदेश अनवरत।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

लहरों में उभरती नई लहरें।

विलय में भी उदय,

जनम-मरण का क्रम है अनूठा,

ये मिटती-मिटाती, तुम में समाती,

पुनर्जन्म का अहसास कराती।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

सूरज से तुम्हारा नाता पुराना,

तपता-तपाता,

ये जीवंत-जल तुम्हारा।

खुद को मिटाता, आसमान को छूता,

मानो सूरज को चूमता,

बन बादल फिर बरसता,

मधु भाव बिखेरता।

सुजलाम-सुफलाम सृष्टि सजाता।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!

जीवन का ये सौंदर्य,

जैसे नीलकंठ का आदर्श,

धरा का विष, खुद में समाया,

खारापन समेट अपने भीतर,

जग को जीवन नया दिलाया,

जीवन जीने का मर्म सिखाया।

हे.. सागर!!!

तुम्हें मेरा प्रणाम!