मप्र विधानसभा की 50 साल बाद टूटने को है परंपरा

भोपाल (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाईन – मध्य प्रदेश में राजनीतिक हालात अब बदले हुए हैं। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच अब वैसे रिश्ते नहीं रहे, जैसे विधानसभा के भीतर पहले हुआ करते थे, क्योंकि लगभग पांच दशक बाद विधानसभा अध्यक्ष का ‘चुनाव’ होने वाला है। अध्यक्ष अब तक आपसी सहमति से ही चुना जाता रहा है।

विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसरानी ने आईएएनएस को बताया कि राज्य में सन् 1972 के बाद विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए मतदान नहीं हुआ। सत्ताधारी और विपक्षी दल आपसी सहमति से अध्यक्ष का चयन कर लिया करते थे, वहीं उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिया जाता था। ये दोनों पद गरिमामय होते हैं, लिहाजा सभी दल यह संदेश देते थे कि ये दोनों पद सभी के लिए सम्मानजनक है और चयन भी सर्वसम्मति से हुआ है।

विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और भाजपा में टकराव का दौर जारी है। कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए जहां एन.पी. प्रजापति को उम्मीदवार बनाया है तो भाजपा ने विधायक विजय शाह की उम्मीदवारी पेश की है। दोनों उम्मीदवारों ने नामांकन भी दाखिल कर दिए हैं। चुनाव मंगलवार को होने वाला है। बहुमत कांग्रेस के पास है, फिर भी भाजपा राजनीतिक हलचल मचाने की तैयारी में है।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि कांग्रेस ने प्रोटेम स्पीकर के चयन में मान्य परंपराओं को तोड़ा है, सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए था, मगर नाक के बाल को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है। विजयवर्गीय ने कहा कि सत्तापक्ष अगर विपक्ष का सहयोग लेकर कार्य करेगा तो विपक्ष साथ है, नहीं तो वे जैसा गाएंगे, विपक्ष वैसा ही बजाएगा।

वहीं, सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जब भाजपा ने अध्यक्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारा है तो कांग्रेस भी उपाध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार उतार सकती है। सत्तापक्ष और विपक्ष की तरफ से आ रहे बयानों से यह साफ है कि इस बार की विधानसभा में राज्य में मान्य परंपराओं को तोड़ने का सिलसिला चलेगा। विधानसभा में दलीय स्थित पर नजर दौड़ाई जाए तो 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 114 और भाजपा के 109 सदस्य हैं। कांग्रेस को सत्ता पाने के लिए बहुजन समाजपार्टी, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय विधायकों का सहयोग लेना पड़ा है।

राजनीति के जानकारों की मानें तो भाजपा अपनी ताकत का अहसास कराने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती। लिहाजा, अगर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का चुनाव शांति से निपट गया तो भाजपा को सदन से लेकर सड़क तक वह करने का मौका नहीं मिलेगा, जिसकी उसे अभी जरूरत है।