हॉकी के जज्बे से भरी थोड़ी स्लो फिल्म है ‘गोल्ड’

मुंबई। समाचार ऑनलाइन
फिल्म ‘गोल्ड’ तपन दास (अक्षय कुमार) और 1936 में बर्लिन (जर्मनी) ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के साथ शुरू होती है। हॉकी के मैदान में जर्मनी से जीतते भारतीय हैं और मैदान में झंडा ब्रिटेन का फहराता है। उसी समय टीम के एक बंगाली जूनियर मैनेजर तपन दास (अक्षय कुमार) ने आजाद भारत की टीम को गोल्ड दिलाने का संकल्प लिया। उसका सपना 1948 में ब्रिटेन की धरती पर भारतीय ध्वज लहराने का था।
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यह 1948 के लंदन ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम द्वारा अंग्रेजों को उन्हीं के मैदान पर हराने की कहानी है। जहां भारत को साबित करना है कि 1936 से 1948 तक खेलों में उसका वर्चस्व सिर्फ चांस की बात नहीं थी। 1946 आते-आते तय होता है कि 1948 में ओलंपिक होंगे और तपन दास फिर से हॉकी एसोसिएशन से जुड़ कर टीम बनाने की तैयारी में लग जाता है। जब तक टीम बनती है तब तक देश का विभाजन हो जाता है और आधे खिलाड़ी पाकिस्तान चले जाते हैं। अब फिर से कैसे पूरी टीम बनती है। और कैसे 1948 के ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतती है यह फिल्म देखकर ही पता चलेगा।
हॉकी को लेकर जज्बात के लहजे से फिल्म कहीं कहीं काफी दमदार है लेकिन कई बार आप फिल्म देखते हुए पाते हैं कि उसमें हॉकी पर ही बनी बेहतरीन फिल्म ‘चक दे इंडिया’ जैसा जादू बरकरार नहीं रख पाई है। फिल्म की एडिटिंग कुछ बेहतर हो सकती थी कई जगह पर फिल्म काफी स्लो है। फिल्म को विस्तार से लिखा और ऐतिहासिक स्थितियों को बारीकियों से फिल्माया है। यहां घटनाओं का फैलाव है। इसलिए फिल्म की लंबाई 154 मिनट हो गई है। तपन दास के किरदार में अक्षय कुमार रोचक लगे हैं मौनी रॉय भी तपन की पत्नी के रोल को बखूबी निभाया है। पहले हॉकी खिलाड़ी सम्राट के रूप में कुणाल कपूर काफी दमदार लगे हैं।
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