साधु-संतों की नाराज़गी भेदेगी शिवराज का किला?

भोपाल | समाचार ऑनलाइन – मध्यप्रदेश में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने हिसाब से अपनी चुनावी रणनीतियों को आकार देने में जुटी हैं. इस बार भाजपा की राह आसान नहीं होगी यह काफी हद तक स्पष्ट हो चुका है. सवर्ण समाज भाजपा से नाराज़ चल रहा है. कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर राज्य सरकार के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं और अब कंप्यूटर बाबा भी सरकार की परेशानी बढ़ा रहे हैं. इस बीच शिवराज सिंह ने हिंदू आचार्य महासभा का समर्थन हासिल कर हवा के रुख को अपनी ओर पलटने का प्रयास ज़रूर किया है.

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राजधानी भोपाल के हिंदी भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में महासभा के अध्यक्ष स्वामी परमानन्द गिरी का कंप्यूटर बाबा को अवसरवादी करार देना, शिवराज सिंह के लिए राहत के समान है कि साधु-संतों का एक वर्ग अभी भी उनके साथ है. संभवत: इसी राहत के बल पर उन्होंने यह दावा भी किया कि साधु-संतों के आशीर्वाद से प्रदेश में चौथी बार भाजपा की सरकार बनेगी. हालांकि, स्थिति इतनी सरल है नहीं. देवकी नंदन ठाकुर की तरह कंप्यूटर बाबा को भी जनसमर्थन प्राप्त है. यदि आखिरी वक़्त तक दोनों अपने रुख पर कायम रहे, तो निश्चित तौर पर भाजपा, खासकर शिवराज सिंह को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इस बात का अहसास खुद भाजपा को भी है. यही कारण है कि अंदरखाने से दोनों संतों को मानाने की कवायदें तेज़ हो गई हैं. पार्टी की दूसरे राज्यों के बड़े-बड़े संतों को कंप्यूटर बाबा के पास भेजने की योजना है. इसमें जूनापीठ के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी का नाम सबसे ऊपर है.

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मध्यप्रदेश की राजनीति में साधु-संतों का प्रभाव शुरू से ही ज्यादा रहा है, फिर चाहे वह प्रत्यक्ष या परोक्ष. इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया था, जिसमें कंप्यूटर बाबा भी शामिल थे. लेकिन इस महीने की शुरुआत में अचानक से कंप्यूटर बाबा ने राज्यमंत्री का दर्जा त्याग दिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर हमलावर हो गए. नामदेव शास्त्री उर्फ कंप्यूटर बाबा का आरोप है कि सरकार ने धर्म और संत समाज की उपेक्षा की है। हालांकि, इसके पीछे उनका निजी स्वार्थ भी सामने आ रहा है.

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दरअसल, कंप्यूटर बाबा ने हाल ही में भाजपा के टिकट से विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा भी जाहिर की थी लेकिन पार्टी की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. इससे पहले 2014 में भी कंप्यूटर बाबा ने आम आदमी पार्टी और भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, मगर टिकट नही मिल सका. भाजपा इस बात को आधार बनाकर अन्य संतों का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर सकती है, और शायद कर भी रही है, लेकिन उसे आभास है कि कंप्यूटर बाबा उसका गणित बिगाड़ सकते हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा चुनाव से पहले नाराज़ साधु-संतों को कैसे अपने पाले में ला पाती है.