बाबरी विध्वंस: वो काला दिन, जो 2000 जिंदगियों को निगल गया

आयोध्या : समाचार ऑनलाइन – 6 दिसंबर, 1992 का दिन भारत के इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज है। इसी दिन अयोध्या में बाबरी ढांचे को ढहाया गया था। नवंबर 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बाबरी ढांचे के पास शिलान्यास की मंजूरी देकर इस विवाद को और हवा दे दी थी। जबकि वीएचपी के आंदोलन ने इस विवाद को चरम पर पहुंचाया था। 26 साल बाद भी बाबरी मस्जिद विध्वंस और अयोध्या मंदिर की राजनीति खत्म नहीं हुई है।

बाबरी मस्जिद उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अयोध्या शहर में रामकोट पहाड़ी (“राम का किला”) पर एक मस्जिद थी। वीएचपी की रैली के दौरान मस्जिद को कोई नुकसान नहींपहुंचाने देने की सर्वोच्च न्यायालय से वचनबद्धता के बावजूद, 1992 में 150,000 लोगों की हिंसक भीड़ ने बाबरी को विध्वंस कर दिया था। मुंबई और दिल्ली सहित कई प्रमुख भारतीय शहरों में इसके फलस्वरूप हुए दंगों में 2,000 से अधिक लोग मारे गये थे।

एक धक्का और दो, बाबरी तोड़ दो…”, अयोध्या का आसमान चीरते ये नारे, सैकड़ों साल पुरानी मस्जिद पर चोट करतीं कुदालों की ठक-ठक, सरकारी दफ़्तरों में रखे हुए फोन का लगातार घनघनाना और जय श्री राम के उद्घोष। ये वो आवाज़ें थीं जिन्होंने छह दिसंबर, 1992 की तारीख़ को शक्ल दी, लेकिन सात दिसंबर 1992 को पूरा देश एक अजीब सन्नाटे में डूब गया…जैसे तूफान से पहले की शांति। लग रहा था मानो दो हिस्सों में बंट चुके समाज में इस ओर से लेकर उस ओर के आम लोग खुली आंखों से अगली अनहोनी का इंतज़ार कर रहे थे।

बाबरी मस्जिद का इतिहास
भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुजारियों से हिन्दू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। इस स्थान को हिन्दू ईश्वर, राम की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। बाबरी मस्जिद के इतिहास और इसके स्थान पर तथा किसी पहले के मंदिर को तोड़कर या उसमें बदलाव लाकर इसे बनाया गया है या नहीं, इस पर चल रही राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक बहस को “अयोध्या विवाद” के नाम से जाना जाता है।

1934 के “सांप्रदायिक दंगों” के दौरान, मस्जिद के चारों ओर की दीवार और मस्जिद के गुंबदों में एक गुंबद क्षतिग्रस्त हो गया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा इनका पुनर्निर्माण किया गया। मस्जिद और गंज-ए-शहीदन कब्रिस्तान नामक कब्रगाह से संबंधित भूमि को वक्फ क्र. 26 फैजाबाद के रूप में यूपी सुन्नी केंद्रीय वक्फ (मुस्लिम पवित्र स्थल) बोर्ड के साथ 1936 के अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था। इस अवधि के दौरान मुसलमानों के उत्पीड़न की 10 और 23 दिसम्बर 1949 की दो रिपोर्टें वक्फ निरीक्षक मोहम्मद इब्राहिम ने वक्फ बोर्ड के सचिव को सौंपी थीं।

प्रमुख शहरों का हाल
मुंबई: मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, “सात दिसंबर, 1992 की सुबह मुंबई की सड़कों पर एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया था। मोहम्मद अली रोड पर भारी तनाव और काफ़ी सारे लोग जमा थे। एक बच्चा अपने हाथ में एसिड बम लेकर एक बस की ओर दौड़ रहा था। थोड़ी देर बार उसने वो बम बस की तरफ फेंका दिया। इस दौरान मुंबई के अलग-अलग इलाकों में ऐसी ही गतिविधियां देखी गईं। मुंबई समेत देश के अलग-अलग इलाकों में तनावपूर्ण माहौल था।

लखनऊ: बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान एक आतंक का माहौल था।  आर्मी की गाड़ियां लखनऊ से अयोध्या की ओर जा रही थीं।  इस दौरान पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा था और अल्पसंख्यक समुदाय अपने घरों में सिमट गया था।  हालांकि, कई रामभक्त ऐसे भी थे जिन्हें इस घटना का दुख था।

पटना: बाबरी विध्वंस के वक़्त पटना का माहौल भी गर्माया हुआ था, हालांकि बिहार में राम जन्म भूमि से जुड़ी राजनीति का ज़्यादा असर नहीं था। फिर भी लोगों में यह जानने की उत्सुकता थी कि आखिर किस नेता के इशारे पर हिंसक भीड़ ने मस्जिद को ढहाया। दफ्तरों से लेकर चाय की दुकानों तक बस इसी मुद्दे की चर्चा थी। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए लालू यादव की सरकार ने  सुरक्षा व्यवस्था के व्यापाक इंतजाम कर दिए थे, सड़कों पर पुलिस की टुकड़ियां तैनात की गई थीं।

पाकिस्तान का हाल
बाबरी विध्वंस के बाद पाकिस्तान में कई मंदिरों के तोड़े जाने की ख़बरें सामने आई थीं। आठ दिसंबर के न्यूयॉर्क टाइम्स के अंक में जिक्र था कि सात दिसंबर के दिन पाकिस्तान में30 हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। लाहौर में एयर-इंडिया के दफ़्तर पर हमला हुआ और भारत विरोधी नारे लगाए गए। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब किया और बाबरी मस्जिद विध्वंस पर कड़ा ऐतराज़ जताया और मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की।