राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का नहीं कर सकते इंतजार

प्रयागराज । समाचार ऑनलाइन – अयोध्या में राम मंदिर को लेकर काफी चर्चा छिड़ चुकी है। श्री राम और अयोध्या का राम मंदिर लंबे समय से राजनीतिक परिदृश्य में एक चुनावी मुद्दा मात्र बन कर रह गए हैं। विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार  ने कहा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं किया जा सकता। उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार से संसद में कानून बनाये जाने की मांग की है।

प्रयागराज स्थित वीएचपी के कार्यालय केसर भवन में मीडिया से बात करते हुए आलोक कुमार ने कहा कि, 31 जनवरी 2019 को प्रयाग कुम्भ में होने वाली धर्म संसद तक अगर मंदिर निर्माण को लेकर सभी कानूनी बाधाएं दूर हुईं तो मंदिर निर्माण की तिथि का भी ऐलान हो सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो धर्मसंसद से ही सरकार से सवाल किए जाएंगे।

वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा, ‘हमें कोर्ट पर पूरा भरोसा है लेकिन कोर्ट कब फैसला करेगी इस पर भरोसा नहीं है। वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि, जब तक राम मंदिर के मुद्दे का निर्णय नहीं होता है तब तक देश के दो बड़े समुदायों हिंदू और मुसलमानों के संबंधों में सुलगता हुआ तनाव बना रहेगा। इस मामले का हल जल्द हो जाएगा। लेकिन वीएचपी का अब मानना है कि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना उचित नहीं है।

वीएचपी नेता ने कहा, ‘राम मंदिर के लिए सभी दलों के समर्थन का स्वागत है। हमें किसी से परहेज नहीं है। हम सभी दलों के सांसदों से मिलेंगे।15 नवंबर से हर संसदीय क्षेत्र में एक बड़ी जनसभा कर इसकी शुरूआत होगी।’ उन्होंने कहा कि इसके बाद लोग सभी दलों के सांसदों के पास जाकर दबाव बनाया जाएगा कि वह संसद में इस मुद्दे को उठाएं और कानून पास करवाएं। वहीं, राष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया को लेकर पूछे गए सवाल पर कहा कि उनका रास्ता अलग है। लेकिन अगर साथ चलना चाहें तो स्वागत है।

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राम मंदिर मसला

इस बारे में कई तह के मत प्रचलित हैं कि जब मस्जिद का निर्माण हुआ तो मंदिर को नष्ट कर दिया गया या बड़े पैमाने पर उसमे बदलाव किये गए। कई वर्षों बाद आधुनिक भारत में हिंदुओं ने फिर से राम जन्मभूमि पर दावे करने शुरू किये जबकि देश के मुसलमानों ने विवादित स्थल पर स्थित बाबरी मस्जिद का बचाव करना शुरू किया।

प्रमाणिक किताबों के अनुसार पुन: इस विवाद की शुरुआत सालों बाद वर्ष 1987 में हुई। वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं।