छत्रपति शिवाजी महाराज: एक योद्धा जिसकी कूटनीति के दुश्मन भी थे कायल

छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध नीति कमाल की थी, उन्होंने महज थोड़े से समय में ही पूरे मराठा साम्राज्य में अपना एक अलग स्थान कायम कर लिया था। 6 जून, 1674 को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था और यही वह दिन था जब उन्होंने  महाराष्ट्र में हिंदू राज्य की स्थापना की। राज्याभिषेक के बाद उनको छत्रपति की उपाधि मिली थी। छत्रपति शिवाजी महाराज एक ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने दुनिया को दिमाग से युद्ध लड़ना सिखाया। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय अप्रत्यक्ष रूप से उसमें शामिल होकर दुश्मन को परास्त कर दिया था। वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे और उनकी उस कूटनीति के कायल उनके शत्रु भी थे।

मुस्लिमों को थी धार्मिक स्वतंत्रता
शिवाजी महाराज को लेकर कुछ लोगों ने गलत धारणाओं को जन्म दिया, लेकिन वह एक समर्पित हिन्दू होने के साथ-ही-साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को पूरी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। उनके मराठा साम्राज्य में हिन्दू पंडितों की तरह मुसलमान संतों और फकीरों को भी पूरा सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में 1,50,000 योद्धा थे जिनमें से करीब66,000 मुस्लिम थे।

नौसेना की ज़रूरत समझी
शिवाजी महाराज पहले हिंदुस्तानी शासक थे जिन्होंने समझा कि बिना नौसेना के भविष्य में युद्ध नहीं जीते जा सकते और अपनी एक मजबूत नौसेना का गठन किया। उन्होंने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की रक्षा के लिए तट पर कई किले बनाए जिनमें जयगढ़, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और अन्य स्थानों पर बने किले शामिल थे।

महिलाओं का सम्मान
शिवाजी राज में महिलाओं का उत्पीड़न करने वालों की कोई जगह नहीं थी। उन्होंने अपने सैनिकों को सख्त निर्देश दे रखा था कि किसी गांव या अन्य स्थान पर हमला करने की स्थिति में किसी भी महिला को नुकसान नहीं पहुंचाया जाए। महिलाओं को हमेशा सम्मान के साथ लौटा दिया जाता था। अगर उनका कोई सैनिक महिला अधिकारों का उल्लंघन करता पाया जाता था तो उसकी शिवाजी महाराज उसे खुद कड़ी सजा देते थे।