मतिमंद संस्था में टॉर्चर हो रहे बच्चे, 16 साल की मासूम पहुंची अस्पताल   

पुणे | समाचार ऑनलाइन

गुणवंती परस्ते

पुणे के धनकवड़ी स्थित मतिमंद बच्चों के निवासी विद्यालय में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। यहां रहने वाले बच्चे बेहद बुरी दशा में हैं। आरोपों के मुताबिक, बात-बात पर उनकी पिटाई की जाती है और समय पर खाना भी नहीं दिया जाता। ‘अक्षरस्पर्श निवासी मतिमंद विद्यालय (कार्यशाला)’ में मानसिक रूप से विकलांग ऐसे बच्चे रहते हैं, जिनके माता-पिता आर्थिक रूप से उनके पालन-पोषण में सक्षम नहीं हैं। जायज है इस काम के लिए संस्था को डोनेशन भी अच्छा-खासा मिलता होगा, लेकिन जिन बच्चों के नाम पर डोनेशन लिया जाता है उन्हीं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।

संस्था पर लगाये जा रहे आरोपों की पड़ताल के लिए जब पुणे समाचार प्रतिनिधि यहां पहुंचीं, तो काफी हद तक उन्हें सही पाया। इतना ही नहीं, यह भी सामने आया कि बच्चों के लिए दिया जाने वाला सामान संस्था के कर्मचारियों के बीच ही बंट दिया जाता है। इस बारे में समाज कल्याण विभाग से बात करने पर पता चला कि उक्त संस्था सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है।

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संस्था में बच्चों को किस दौर से गुज़रना पड़ता है, इसका अंदाज़ा 16 वर्षीय लड़की से जुड़े एक मामले से लगाया जा सकता है। इस लड़की को करीब डेढ़ महीने पहले ‘अक्षरस्पर्श निवासी मतिमंद विद्यालय (कार्यशाला)’ में लाया गया था। जब परिवार वाले उससे मिलने पहुंचे, तो ये देखकर दंग रह गए कि बच्ची की स्थिति और भी ज्यादा ख़राब हो गई है। इसके बाद उसे इलाज के लिए ससून अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बच्ची फ़िलहाल

जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। पीड़ित परिवार का कहना है कि उसके शरीर पर मारपीट के गहरे निशान हैं और उसे एक महीने तक दवाई भी नहीं दी गई। दरअसल, बच्ची को दौरे आते हैं, और समय पर दवा नहीं मिलने से उसकी तबीयत ज्यादा ख़राब हो गई है

गंदगी इतनी कि बेहोशी आ जाए

संस्था द्वारा बच्चों को अच्छा माहौल उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है, लेकिन विद्यालय परिसर का नज़ारा देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता। ऐसे वक़्त में जब पूरे देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है, विद्यालय परिसर गंदगी से पटा पड़ा है। स्थिति ऐसी है कि बदबू से आप चक्कर खाकर गिर जाएं। यहां बच्चों के रहने की व्यवस्था दो कमरों में की गई है।

पीड़ित परिवार ने बताई करतूतें

पीड़ित बच्ची के परिवार वालों ने बताया कि डेढ़ महीने पहले हमने अपनी बच्ची को विद्यालय में भर्ती करवाया था, इसकी कोई रसीद भी हमें नहीं दी गई थी। यहाँ बच्चों को बेहद घटिया क्वालिटी का खाना दिया जाता है। इतना ही नहीं, यदि कहीं से बच्चों के लिए खाने-पीने का सामान आता है तो वो भी संस्था के संचालक अपने घर ले जाते हैं। बच्चों को जमीन पर बैठने के लिए मजबूर किया जाता है। यदि कोई बच्चा गंदगी करता है तो उसकी पिटाई की जाती है।

पुलिस और अस्पताल के बीच लटकी कार्रवाई

पीड़ित बच्ची के मामले को लेकर पुलिस और ससून प्रशासन गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपना रहे हैं। जब पीड़ित परिवार ने सहकारनगर पुलिस स्टेशन में संस्था के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया, तो पुलिस ने ये कहकर बात टाल दी कि जब तब हॉस्पिटल या समाज कल्याण विभाग किसी तरह का पत्र नहीं देता, हम कार्रवाई नहीं कर सकते। जबकि अस्पताल का कहना है कि जब तक पुलिस इस बारे में पूछताछ करने नहीं आती, हम मेडिकल रिपोर्ट नहीं दे सकते। वहीं, समाज कल्याण विभाग का कहना है कि पुलिस मारपीट का मामला दर्ज कर सकती है। हालांकि, समाज कल्याण विभाग द्वारा संस्था के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए हैं। लेकिन जिस तरह का रवैया इस मामले में अब तक अख्तियार किया गया है उससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या जांच निष्पक्ष तौर पर की जाएगी?