पुणे के ढोल-ताशा ने स्वीडन में बिखेरी रौनक

गणपती बप्पा और शिवाजी महाराज की जय जयकार से गूंज उठा स्वीडन

पुणे । गुणवंती परस्ते । समाचार ऑनलाइन

पुणे हमेशा से देश-विदेश में अपनी अलग संस्कृति से पहचाना जाता है, पुणे के ढोल-ताशा की गूंज सिर्फ शहर तक ही नहीं सीमित है, पुणे के ढोल-ताशा ने एक बार फिर सुर्खिया बटोरते हुए विदेश में भारतीयों का नाम रोशन किया है। स्वीडन के लैंड्सक्रोना शहर में आयोजित कार्निवल में पूरे विश्व से अलग अलग कलाकार आते हैं और जो अपने कला के जलवे बिखरते हैं, भला ऐसे में पुणेकर कैसे पीछे रह सकते हैं। इस साल के कार्निवल में पुणे का ढोल ताशा आकर्षण का केंद्र रहा। जिसमें सिर्फ भारतीयों के पैर नहीं थिरके, ब्लकि पूरे विश्व से मौजूद सैलानियों ने इस ढोल ताशा पर मंत्रमुग्ध होकर डांस किया।

क्या खास है स्वीडन के कार्निवल में

स्वीडन के लैंड्सक्रोना शहर में वर्ष 1992 से कार्निवल ट्रेन व कार्निवल जुलूस का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्निवल की खास विशेषता यह है कि इस कार्निवल में हिस्सा लेने के लिए पूरे विश्व से कलाकार आते हैं और अपनी कला का जौहार दिखाते हैं। इस कार्निवल को देखने के लिए सैलानियों और नागरिकों की बेशुमार भीड़ मौजूद होती है। कार्निवल ट्रेन पूरे शहर को संगीतमय करती है। इस साल कार्निवल ट्रेन में 20 नृत्य प्रस्तुत किए गए। जिसमें थाई डांस, लैटिन सांबा डांस, इंडोनेशिया डांस, न्यूयॉर्क डांस, बॉलीवुड डांस, फायर फ्लो ओरिएंटल डांस ऐसे कुछ प्रमुख डांस प्रस्तुत किए गए। पर इन सबसे के बीच दर्शकों का सबसे ज्यादा दिल मराठी ढोल-ताशा ने जीता। जो हर भारतीय और पुणेकर के लिए गर्व की बात है।

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स्वीडन में भी है मराठी मंडल

स्वीडन में लूंड शहर में महाराष्ट्र और पुणे से बसे मराठी माणूस द्वारा एक मराठी मंडल की स्थापना की गई है। इस मंडल को स्कोने ढोल-ताशा मंडल के नाम से जाना जाता है। कार्निवल ट्रेन में मराठी ढोल, ताशा, लेजिम और झान्ज का पारंपारिक रुप से प्रदर्शन किया गया। कार्निवल ट्रेन में पहली बार पुणे के ढोल-ताशा का प्रदर्शन किया, जिसने वहां सब का दिल जीत लिया। हर कोई ढोल ताशा की धुन में थिरकने को मजबूर हो गए थे। कार्निवल ट्रेन में शामिल महिलाओं ने नऊवारी साड़ी, नथ और पगड़ी पोशाक धारण किया था। पुरुषों ने झब्बा और जीन्स पोषाक परिधान किया था। जींस-झब्बा-पगड़ी ऐसा वेश धारण करने में बच्चे भी पीछे नहीं थे। इन बच्चों में इरा, सोहम, ध्रुव, अरिव और कुणाल ने भारतीय तिरंगा साथ ही भगवा झंडा लहराने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

कार्यक्रम की शुरुवात शंखवादन से हुई, महिलाओं ने लेजीम और झान्ज का इस्तेमाल करके बेहतरीन कलाकारी प्रस्तुत करके दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वहीं पुरुषों ने ढोल-ताशा की गूंज प्रस्तुत करके महाराष्ट्रीयन संस्कृति की झलक प्रस्तुत की। इस प्रदर्शन में लूंड शहर के देवलालीकर, चिपलकट्टी, खराडे, जोशी, शिंदे, पुराणिक, चाकणे, गुंडेवार और योगी यह परिवार शामिल हुआ था।

लैंड्सक्रोना में ढोल-ताशा की आवाज के साथ गणपति बाप्पा मोरया, जय भवानी-जय शिवाजी, पुंडलिक वरदे हरि विठ्ठल जैसे अनेक मराठी घोषणाओं से गूंज उठा था। युरोपीय नागरिकों ने ढोल ताशा में काफी नृत्य किया और पुणे के ढोल ताशा की की युरोपीय नागरिकों ने काफी तारीफ की। मराठी पहनावा और संस्कृति युरोपीय निवासियों के दिल को इतना छू गया कि वे इस कार्यक्रम के वीडियो शूटिंग किया और फोटो निकाले, साथ ही मराठी मंडली के साथ खुद की फोटो भी यादगार के रुप में खिंचवायी।

इस कार्यक्रम की विशेषता

इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए स्कोने ढोल-ताशा मंडल ने बहुत मेहनत की। पुणे से ढोल, ताशा, लेजिम आदि वाद्य युरोप ले जाया गया। स्वीडन में नियम-कानून काफी कड़े हैं, सड़क पर कोई भी वाद्य बजाना हो तो उसके लिए पुलिस की परमिशन लेनी पड़ती है, स्कोने ढोल ताशा मंडल ने कार्यक्रम के लिए स्वीडन में सभी नियमों का पालन करते अपना अनुशासन भी कायम रखा। इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रमुख कार्यकर्ता रंजना, चेतना, श्रुती, विद्या, सुमित, निखिल, विशाल, चंद्रप्रकाश, चंदरभाई और अन्य लोगों का समावेश है।