जानिए क्या होता है रिक्टर स्केल और कैसे तबाही मचाती है तीव्रता

पुणे समाचार

दिल्ली और उत्तर भारत में भूकंप के झटके महसूस किये गए। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 6.2 आंकी गई। जब भी भूकंप की बात होती है रिक्टर स्केल का जिक्र ज़रूर किया जाता है। ऐसे में सवाल उठाना लाज़मी है कि आखिर ये रिक्टर स्केल होता क्या है और कितनी तीव्रता कितना बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है?

सबसे पहले समझते हैं कि रिक्टर स्केल क्या है। रिक्टर स्केल भूकंप की तरंगों की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना है। यह किसी भूकंप से पैदा भूकंपीय तरंगों और उससे निकलने वाली ऊर्जा को मापकर आंकड़ों में दर्ज करता है। इस प्रणाली का अविष्कार 1935 में अमेरिकी भूकंप विज्ञानी चार्ल्स एफ रिक्टर ने किया था और उन्हीं के नाम पर इसका नाम रिक्टर पड़ गया। चार्ल्स कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी से जुड़े थे और उन्होंने लगभग 200 से अधिक भूकंपों का अध्ययन करके रिक्टर स्केल नमूने का विकास किया. रिक्टर स्केल का सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1935 में किया गया था।

रोजाना आठ हजार झटके
रिक्टर स्केल ही यह बताने का काम करता है कि किस भूकंप से कितनी अधिक तबाही हो सकती है। इस पैमाने में दर्ज किए जाने भूकंपों में 2.0 की तीव्रता से कम वाले भूकंपीय झटकों की संख्या रोजाना लगभग आठ हजार होती है जो इंसान को महसूस ही नहीं होते। रिक्‍टर स्‍केल पर जितना ज्‍यादा भूकंप मापा जाता है, जमीन में उतना ही अधिक कंपन होता है। मसलन,रिक्टर पैमाने पर 7.9 तीव्रता का भूकंप आने पर इमारतें तक गिर जाती हैं। वहीं, 2.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है।

तीव्रता और तबाही का गणित

2 से 2.9 : इस तीव्रता का भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है

4 से 4.9 : खिड़कियां टूट सकती हैं, दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं

5 से 5.9 : फर्नीचर आदि घर का सामान हिल सकता है

6 से 6.9 : इमारतों की नींव भी दरक सकती है

7 से 7.9 : इस तीव्रता में इमारतें गिर जाती हैं

8 से 8.9 : इमारतों सहित बड़े-बड़े पुल भी पलक झपकते गिर जाते हैं

9 और उससे ज्यादा: इस तीव्रता का भूकंप बड़ी तबाही मचाता है। ये भूकंप सुनामी का  कारण भी बन सकता है।