पृथ्वी की तबीयत नासाज, पढ़िए क्यों मंडरा रहा है खतरा

नई दिल्ली: समाचार ऑनलाइन – पृथ्वी की तबीयत लगातार नासाज़ होती जा रही है, लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। नासा की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि साल 2018 में ग्लोबल वार्मिंग ने लगातार नया रिकॉर्ड कायम किया है। यह ऐसा पांचवां साल है जिसमें ग्लोबल एवरेज सरफेस टेंपरेचर में लगातार वृद्धि हुई है। इस खतरे से निपटने के लिए दुनिया के वैज्ञानिक और संस्थाएं प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वह बेहद निराशाजनक हैं। अध्ययन में सामने आया है कि बीते 100 सालों में ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणामों में लगातारइजाफा हुआ है।

दूसरे विश्व युद्ध की भयावयता के बारे में तो हर कोई जानता है। इसके बाद से दुनिया का तापमान हम होने के बजाये बढ़ता जा रहा है। आने वाले समय में मल्टी डेकडान कूलिंग और ग्लोबल वार्मिंग के बीच प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है। इसका मतलब है कि तापमान का बढ़ना तो जारी रहेगा, लेकिन धरती को ठंडा रखने वाले कारक भी अपना काम जारी रखेंगे। बढ़ते तापमान के कारण हिमखंड पिघल रहे हैं, जिससे समुद्री जल स्तर बढ़ता जा रहा है। इससे बाढ़ का खतरा तो बढ़ ही रहा है साथ ही समुद्री पानी भी गर्म हो रहा है। जो समुद्री जीवों के लिए जानलेवा है। ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर ऐसे ही समुद्री जल का स्तर बढ़ता रहा तो इस शाताब्दी तक दुनियाभर में सागरों का जल 30 सेंटीमीटर तक ऊपर आ सकता है।

बिगड़ जाएगा पारिस्थितिकी तंत्र
समुद्र के बढ़ते जल स्तर का खतरा केवल बाढ़ तक ही सीमित नहीं रहेगा। बल्कि इससे द्वीपों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। जल का स्तर बढ़ने से जमीन के लगातार डूबते जाने का खतरा होगा। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में पानी का खारापन भी बढ़ जाएगा। जो तटीय भूमि, तटीय जैव संपदा और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ सकता है। जिसके कारण लोगों को अपना आवास मजबूरन छोड़ना पड़ेगा।

ग्लोबल वार्मिंग से कई अमेरिकी, यूरोपीय और एशियाई देशों में अधिक वर्षा हो रही है। वहीं कई इलाके ऐसे भी हैं जिन्हें सूखे का सामना करना पड़ रहा है। अगर हम भारत की बात करें तो यहां भी बीते एक दशक में बर्फबारी, सूखा, बाढ़ और गर्मी बढ़ी है। इसी कारण से बीते 15 सालों में दिल्ली सहित अन्य मैदानी इलाकों में अधिक बारिश हुई है। वहीं उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में असामान्य बर्फबारी बढ़ी है।

पूरी पृथ्वी हो सकती है जलमग्न
अंटार्कटिका के तापमान में बीते 100 सालों में दो गुना अधिक वृद्धि हुई है। जिससे इसके बर्फीले क्षेत्रफल में कमी आई है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक रिसर्च के एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग ऐसे ही जारी रही तो उत्तर ध्रुवीय समुद्र में साल 2040 तक बर्फ दिखनी ही बंद हो जाएगी। तब ये इलाका एक समुद्र में तब्दील हो चुका होगा। इस बर्फ की चादर के कम होने का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा और वहां के तापमान में वृद्धि होगी। वैज्ञानिकों का तो यह भी कहना है कि अगर यहां की सारी बर्फ पिघल गई तो समुद्र का स्तर 230 फीट तक बढ़ जाएगा, जिससे पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी।

बढ़ रहीं बीमारियां
तापमान बढ़ने से कई तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। इसका एक कारण ये भी है कि ऐसा होने से साफ जल की कमी होती जा रही है, तेजी से शुद्ध हवा खत्म हो रही है, लोगों को ताजा फल और सब्जियां भी नहीं मिल पा रही हैं। इससे पशु पक्षियों को पलायन करना बढ़ रहा है और इनमें से कई प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं, या फिर लुप्त होने की कगार पर हैं।