अंततः पालकी स्वागत पर सियासत हुई समाप्त

वारकरियों को भेंटवस्तु देने को लेकर सियासी मतैक्य

पिंपरी।  समाचार ऑनलाइन

पिंपरी चिंचवड़ में संत तुकाराम महाराज व संत ज्ञानेश्वर महाराज पालकी के स्वागत पर सियासत को लेकर चहुंओर से हो रही टिप्पणियों के बाद सोमवार को सर्वदलीय बैठक में वारकरियों को भेंटवस्तु देने को लेकर सभी दलों का सियासी मतैक्य हो गया। पिंपरी चिंचवड़ मनपा में हुई इस बैठक में पालकी में शामिल वारकरियों को भेंटवस्तु के रूप में तालपत्री या तंबू देने का फैसला लिया गया। अगर इसमें प्रशासन को कोई दिक्कत हो तो सर्वदलीय नगरसेवकों के मानदेय से खरीदी करने के आदेश महापौर नितिन कालजे ने प्रशासन को दिए।

बीते दो साल से शहर में संत तुकाराम महाराज व संत ज्ञानेश्वर महाराज पालकी के स्वागत पर सियासत गूंज रही है। वारकरियों को स्वागत के दौरान दी जानेवाली भेंट वस्तुओं की खरीदी में भ्रष्टाचार के आरोप और उच्च न्यायालय के फैसले अनुसार इस साल भेंट वस्तु न खरीदने का फैसला सत्तादल भाजपा ने किया था। इस चहुंओर से टीका- टिप्पणी की जाती रही। वहीं सत्तादल को नास्तिक बताकर विपक्षी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस द्वारा अपने नगरसेवकों के मानदेय से भेंट वस्तु देने संबन्धी घोषणा से सत्तादल के तेवर नरम पड़ गए।

सभागृह नेता एकनाथ पवार ने आज मनपा में सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। महापौर नितिन कालजे के कार्यालय में हुई इस बैठक में विपक्षी नेता दत्ता साने, शिवसेना के गुटनेता राहुल कलाटे, मनसे के गुटनेता सचिन चिखले, निर्दलीय मोर्चा के कैलाश बारने, नगरसेवक शत्रुघ्न काटे, अतिरिक्त आयुक्त प्रवीण आष्टिकर, वारकरी प्रतिनिधि बापू महाराज मोरे, बालासाहेब हरगुड, अशोक मोरे, उत्तम साने, रमेश मोरे, बालासाहेब साने, गणपत माने, डीडी फुगे, कांतिलाल साने, अरुण दाभाड़े, दत्तात्रय भालेकर आदि उपस्थित थे।

मनपा चुनाव से पहले तत्कालीन सत्ताधारी राष्ट्रवादी कांग्रेस पर वारकरियों को दी जानेवाली भेंटवस्तु की खरीदी में भ्रष्टाचार के आरोप लगे, भाजपा ने इसे चुनाव का मुद्दा बनाया। चुनाव जीतने के बाद भाजपा के शासनकाल में भी ऐसे ही आरोप हुए। पालकी स्वागत पर जारी सियासत के दौर में ही राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश, जिसमें मनपा की निधि से उत्सव, महोत्सव, जयंती आदि मनाने और स्वागत सम्मान पर किये जानेवाले खर्च पर रोक लगाई गई है, को आधार बताकर सत्तादल भाजपा ने इस साल पालकी स्वागत में वारकरियों को भेंटवस्तु न देने का फैसला किया। इस बारे में सत्तादल पर चहुंओर से टीका टिप्पणी की जाने लगी। विपक्षी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस ने भाजपा पर सालों से चली आ रही परंपरा को खंडित करने को लेकर निशाना साधा था।