2019 में भाजपा के सामने होंगी दोतरफा चुनौतियां

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। एक तरह जहाँ उसके लिए संपूर्ण विपक्ष से मुकाबले की चुनौती होगी, वहीं अपने सहयोगियों को साथ रखना भी आसान नहीं होगा। भाजपा के कई सहयोगी उससे नाराज़ चल रहे हैं, जो साथ हैं उनकी तरफ से भी विरोधी स्वर सुनाई देने लगे हैं। फ़िलहाल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) इस बात को लेकर विवाद चल रहा है कि कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा। बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के बाद अब लोकजन शक्ति पार्टी (एलजेपी) ने लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर अपनी दावेदारी साफ कर दी है। एलजेपी प्रदेश अध्यक्ष और नीतीश सरकार में पशु पालन मंत्री पशुपति कुमार पारस ने कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी सात सीटों पर चुनाव लड़ेगी, इससे कम सीटों पर चुनाव लड़ने का कोई सवाल ही नहीं।

यह है समस्या
इससे पहले साल 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए जेडीयू 25 सीटों पर दावा ठोक चुकी है। आपको बता दें कि बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, जिसमें से पिछली बार भाजपा ने 29 सीटों और एलजेपी ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से भाजपा को 22 और एलजेपी को 6 सीटों पर जीत मिली थी। इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। लिहाजा एलजेपी को सात सीटों से कम पर चुनाव लड़ने के लिए मनाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। समस्या यहाँ ये है कि पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने राजग अलग होकर चुनाव लड़ा था, जिस वजह से भाजपा को सीट बंटवारे में कोई दिक्कत नहीं हुई थी। लेकिन इस बार जेडीयू के साथ आने से किसे कितनी सीटें मिलें इस पर पेंच फंस गया है।

…तो रह जाएंगी केवल चंद सीट
जेडीयू चाहती है कि कुल 40 में से 25 सीटों उसे चुनाव लड़ने दिया जाए, इसी तरह एलजेपी ने सात और आरएलएसपी ने तीन सीटों पर दांव ठोंका है। यदि भाजपा इसके लिए सहमत हो जाती है, तो उसके खाते में केवल आठ सीटें आयेंगी, जो निश्चित तौर पर उसे मंजूर नहीं होगा। भाजपा इस बात को समझती है कि 2019 का चुनाव 2014 की तरह उसके लिए धमाकेदार नहीं होगी, फिर भी उसे यह लगता है कि सहयोगियों के मुकाबले उसकी स्थिति काफी बेहतर रहने वाली है, इसीलिए वह सीटों पर किसी तरह समझौता करने के मूड में नहीं है।

उपचुनावों की हार का असर
मौजूदा स्थिति को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा को ऐसा फॉर्मूला तैयार होगा जिससे सब खुश रहें, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। दरअसल, गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार को देखते हुए राजग के घटक दलों के तेवर तल्ख़ हो गए हैं। इनको लगता है कि पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष कड़ी चुनौती पेश करेगा, जिसके चलते भाजपा के पास अपने सहयोगी दलों को साधने की मजबूरी होगी। भाजपा भविष्य में आने वाले संकट से वाकिफ है और इसीलिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह अपने सहयोगी दलों को साधने के अभियान पर निकल पड़े हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलने के बाद वह बिहार के सहयोगी दलों को साधने की रणनीति पर काम करेंगे।