भोपाल के दिल में शिवराज, लेकिन थोड़े अहंकारी हो गए हैं

नीरज नैयर
मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके मद्देनजर जहाँ कांग्रेस ने संगठनात्मक स्तर पर व्यापक बदलाव किये हैं, वहीं भाजपा भी अपनी रणनीतियों का खाका तैयार करने में जुटी है। राजधानी भोपाल में बैठकों का दौर चल रहा है, साथ ही जनता के मिजाज़ पर भी नज़र रखी जा रही है। ‘पुणे समाचार’ ने इस चुनावी मौसम में भोपाल की जनता का दिल टटोलने की कोशिश की। इस दौरान अधिकांश लोगों ने कहा कि उन्हें बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कामकाज पसंद है। हालांकि उन्होंने ये भी माना की पिछले कुछ वक़्त में शिवराज सिंह के व्यवहार में नकारात्मक बदलाव आया है। खासकर बॉडीगार्ड के साथ धक्कामुक्की की घटना से कहीं न कहीं यह संदेश गया है कि वो अहंकारी होते जा रहे हैं।

एक संक्षिप्त सर्वेक्षण में हमने लोगों से पूछा कि क्या वो भाजपा को पुन: सत्ता में देखना पसंद करेंगे? क्या कांग्रेस इस बार दमखम दिखा पाएगी? क्या मौजूदा सरकार के काम की बदौलत भाजपा को वोट देंगे या फिर कोई और वजह है? हमने कुछ रिटायर्ड सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ-साथ आम जनता से संवाद किया। इसमें टैक्सी ड्राइवर से लेकर व्यापारी और युवावर्ग भी शामिल था। अधिकांश लोगों ने स्वीकार किया कि शिवराज सिंह के नेतृत्व में प्रदेश खासकर भोपाल में विकास हुआ है। दिग्विजय सिंह के दौर से मध्यप्रदेश काफी आगे निकल चुका है और बिजली-पानी की समस्या भी अब कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।

कानून व्यवस्था पर सवाल
भोपालवासी बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर शिवराज सरकार से खफा हैं। उनका कहना है कि पिछले चार-पांच सालों से प्रदेश में हालत ख़राब हुए हैं। राजधानी भोपाल में ही अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्हें पुलिस का बिल्कुल भी खौफ नहीं है। लोगों की यह भी शिकायत है कि पुलिसकर्मियों के व्यवहार और कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं आया है। पुलिस न तो कंप्लेंट को गंभीरता से लेती है और न ही उनकी सुरक्षा के प्रति तत्परता दिखाती है। हालत ये हो चले हैं कि 100 नंबर पर कॉल करने के बाद भी समय पर मदद नहीं मिलती।

कांग्रेस को समय लगेगा
सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों को लगता है कि प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ होने में कांग्रेस को अभी काफी वक़्त लगेगा। उनका मानना है कि प्रदेश स्तर पर कांग्रेस के पास फ़िलहाल कोई ऐसा नेता नहीं है जो शिवराज सिंह का मुकाबला कर सके। इसके अलावा नेताओं के बीच गुटबाज़ी भी कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या है। राजनीति पर नज़र रखने वालों का कहना है कि कांग्रेस द्वारा कमलनाथ के कद में इजाफा करने को लेकर ज्योतिरादित्य समर्थक नाराज़ हैं और इसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने गुटबाजी की कीमत चुकाई थी।

दूसरा विकल्प नहीं
बातचीत में कुछ लोग ऐसे भी मिले जो मौजूदा सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं। इसके पीछे तमाम कारण हैं, जिसमें से एक तेल की बढ़ती कीमतें भी हैं। इन लोगों का कहना है कि जब कांग्रेस केंद्र में थी तो शिवराज सिंह ने पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी के विरोध में खूब साइकिल चलाई थी और अब मूल्यवृद्धि को जायज बता रहे हैं। इनका कहना है कि राज्य में फ़िलहाल भाजपा के अलावा कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस की स्थिति ऐसी नहीं है कि उसे प्रदेश की सत्ता सौंपी जा सके, इसलिए भाजपा मज़बूरी में सामने आया विकल्प बन गई है और यही वजह है कि न चाहते हुए भी लोग उसे ही वोट देंगे।